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________________ (xxi) 445-504 445 446 446 446 448 451 452 452 452 453 453 453 454 454 455 सप्तम अध्याय:- विशेषावश्यकभाष्य में केवलज्ञान केवल ज्ञान को अन्त में कहने का कारण केवलज्ञान का लक्षण . श्वेताम्बर आचार्यों की दृष्टि में केवलज्ञान का लक्षण . दिगम्बर आचार्यों की दृष्टि में केवलज्ञान का लक्षण केवलज्ञान को परिभाषित करने में प्रयुक्त विशेषणों का अर्थ केवलज्ञान के स्वामी अथवा प्रकार . केवली का लक्षण भवस्थ केवलज्ञान भवस्थ केवलज्ञान के भेद . सयोगी भवस्थ केवलज्ञान * सयोगी भवस्थ केवलज्ञान के भेद अयोगी भवस्थ केवलज्ञान ★ सयोगी भवस्थ केवलज्ञान के भेद सिद्ध केवलज्ञान सिद्ध का स्वरूप सिद्ध केवलज्ञान के प्रकार + अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान अनन्तरसिद्ध के भेद परम्पर सिद्ध केवलज्ञान परम्पर सिद्ध केवलज्ञान के भेद केवलज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया केवलज्ञान की प्राप्ति के हेतु विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार निश्चयनय और व्यवहारनय की अपेक्षा कर्मों का क्षय केवली समुद्घात केवली समुद्घात कौन करता है? केवली समुद्घात का प्रयोजन केवली समुद्घात के पूर्व की अवस्था केवली समुद्घात की प्रकिया केवली समुद्घात में कर्म प्रकृतियों की क्षपणा की प्रक्रिया केवली समुद्घात में योगों की प्रवृत्ति केवली समुद्घात के बाद की प्रवृत्ति केवली के योग-निरोध की प्रक्रिया मन के अभाव में केवली के ध्यान कैसे? सिद्ध अवस्था की प्राप्ति 455 455 455 463 464 466 466 467 468 468 469 470 471 471 472 473 473 474 475
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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