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________________ क्षेत्र द्वार और अवधिज्ञान संबद्ध और असंबद्ध का क्षेत्र असम्बद्ध और स्पर्धक अवधि में अन्तर है गति आदि द्वारों के अन्तर्गत अवधिज्ञान ऋद्धि (लब्धि) द्वार एवं अवधिज्ञान • लब्धि का अर्थ लब्धि का अधिकारी विशेषावश्यक भाष्य में वर्णित लब्धियाँ लब्धि और औदयिक आदि भाव विशेषावश्यक भाष्य में वर्णित लब्धियों के अतिरिक्ति लब्धियाँ दिगम्बर परम्परा में लब्धियां लब्धियों के सम्बन्ध में प्राप्त मतान्तर चक्रवर्ती लब्धि भवी के ही क्यों होती है 28 लब्धियों में से भव्य - अभव्य जीव में पाई जाने वाली लब्धियाँ समीक्षण षष्ट अध्याय :- • विशेषावश्यक भाष्य में मनः पर्यवज्ञान मनः पर्यवज्ञान के वाचक शब्द मनः पर्यवज्ञान का लक्षण श्वेताम्बर आचार्यों की दृष्टि में मनः पर्यवज्ञान का लक्षण दिगम्बर आचार्यों की दृष्टि में मनः पर्यवज्ञान का लक्षण मनः पर्यवज्ञान के वाचक शब्दों से निष्पन्न लक्षण मनः पर्यवज्ञान और मतिज्ञान मनः पर्यवज्ञान और अनुमान मनः पर्यवज्ञान और श्रुत मनः पर्यवज्ञान की प्राप्ति से पूर्व अवधिज्ञान की आवश्यकता है या नहीं मनः पर्यवज्ञान और अवधिज्ञान की अभिन्नता एवं भिन्नता अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान की अभिन्नता अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान में भिन्नता की सिद्धिं मनः पर्यवज्ञान की अर्हता अर्थात् अधिकारी या स्वामी मनुष्य गर्भजमनुष्य कर्मभूमिजमनुष्य संख्यातवर्षायुष्यक मनुष्य पर्याप्त सम्यग्दृष्टि (xix) 376 376 377 377 378 378 378 378 383 383 385 386 386 386 387 397-444 397 398 398 399 399 401 402 402 402 403 404 405 407 407 407 408 408 409 409
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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