SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [188] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन का है और अन्तिम तीन नाम वासना स्वरूप के हैं। पांचों पर्यायवाची शब्दों के अर्थ नंदीचूर्णि, हारिभद्रीय वृत्ति और मलयगिरि वृत्ति के आधार पर निम्न प्रकार से हैं - 1. धरणा - जाने हुए पदार्थ ज्ञान को अन्तर्मुहूर्त तक दृढ़तापूर्वक उपयोग में धारण किये रहना-'धरणा' है। यह अविच्युति रूप है। यह धारणा की प्रथम अवस्था है। 2. धारणा - जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट असंख्यात काल के बाद भी उस पदार्थ के ज्ञान का स्मरण होना 'धारणा' है। यह धारणा की दूसरी अवस्था है। जिनभद्रगणि ने इसका एक अर्थ अवाय की अविच्युति किया है। 3. स्थापना - उस पदार्थ ज्ञान को पूर्वापर होने पर भी आलोचनापूर्वक हृदय में जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यात काल तक स्थापित किये रखना 'स्थापना' है। यह धारणा की तीसरी अवस्था है। जिनदासगणि के अनुसार अवाय में ज्ञात अर्थ को हृदय में स्थापित करना स्थापना है। हरिभद्र और मलयगिरि ने इस स्थापना को वासना रूप माना है। हरिभद्र ने इस सम्बन्ध में मतान्तर का उल्लेख करते हुए कहा है कि कुछ आचार्यों के मत से धारणा वासना रूप और स्थापना स्मृति रूप है।169 4. प्रतिष्ठा - उस पदार्थ ज्ञान को भेद-प्रभेद पूर्वक हृदय में रखना-प्रतिष्ठा' है। जैसे कि जल में पत्थर नीचे जाकर प्रतिष्ठित होता है। यह धारणा की चौथी अवस्था है। 5. कोष्ठ - जैसे कोठे में रखा हुआ धान पूर्णतः सुरक्षित रहता है, वैसे ही पदार्थ ज्ञान का पूर्णतया हृदय में रहना अर्थात् अवधारित अर्थ का विनष्ट नहीं होना 'कोष्ठ' है। यह धारणा की पांचवी अवस्था है। जिनदासगणि, हरिभद्र और मलयगिरि के अनुसार धरण, धारणा और स्थापना अनुक्रम से अविच्युति, स्मृति और वासना रूप है। षट्खण्डागम में भी नंदी के समान पांच ही शब्द हैं, लेकिन अन्तर इतना है कि नंदीसूत्र में पहला भेद धरणा है और षट्खण्डागम में धरणी है। दूसरा अन्तर नंदी में चौथा भेद प्रतिष्ठा और पांचवां भेद कोष्ठ है जबकि षट्खण्डागम में चौथा भेद कोष्ठ और पांचवां भेद प्रतिष्ठा है।70 तत्त्वार्थभाष्य में धारणा, प्रतिपत्ति, अवधारण, अवस्थान, निश्चय, अवगम और अवबोध शब्द मिलते हैं, लेकिन वहाँ इनके अर्थों को स्पष्ट नहीं किया है। धवलाटीका के अनुसार जो बुद्धि निर्णीत अर्थ को धारण करे वह धरणी है। जिससे निर्णीत रूप अर्थ धारण किया जाता है वह धारणा है। जिससे निर्णीत रूप से अर्थ की स्थापना होती है, वह स्थापना है। जो निर्णीत अर्थ को धारण करती है, वह बुद्धि कोष्ठा है। जिसमें विनाश के बिना पदार्थ प्रतिष्ठित रहे वह बुद्धि प्रतिष्ठा है।72 जिनदासगणी आदि आचार्यों के अनुसार निर्णीत अर्थ को भेद-प्रभेद सहित हृदय में स्थापना करना प्रतिष्ठा है, जबकि धवलाटीका के अनुसार विनाश के बिना अर्थ की प्रतिष्ठा को प्रतिष्ठा कहा है। कोष्ठ में दोनों का अर्थ समान है, लेकिन नंदी टीका में अविनाश को कोष्ठ की व्याख्या में और धवलाटीका में इसे प्रतिष्ठा की व्याख्या में आधार बनाया गया है। इस प्रकार नंदी के टीकाकारों ने धरणा आदि तीन को धारणा के तीन भेदों के रूप में समझाया है। जबकि धवलाटीका में इनका व्युत्पत्ति परक अर्थ किया है। 467. नंदीचूर्णि, पृ. 60, हारिभद्रीय, पृ. 60, मलयगिरि, पृ. 177 468. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 180 469. नंदीचूर्णि पृ. 60, हारिभद्रीय पृ. 60, मलयगिरि पृ. 177 470. धरणी धारणाट्ठवणा कोट्ठा पविट्ठा। - षट्खण्डागम पु. 13 सू. 5.5.40 पृ. 243 471, धारणा प्रतिपत्तिरवधारणावस्थानं निश्चयः अवगमः अवबोध इत्यनर्थान्तरम्। - तत्त्वार्थभाष्य 1.15 पृ. 82 472. षट्खण्डागम (धवला) पु. 13 सू. 5.5.40 पृ. 243
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy