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________________ तृतीय अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में मतिज्ञान [179] आवश्यकनियुक्ति में 'अपोह' एक अपेक्षा से मतिज्ञान सामान्य की पर्याय के रूप में और दूसरी ओर अवाय अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जिनभद्रगणि ने अपोह का अर्थ अवाय किया है। जबकि षट्खण्डागम में ईहा के पर्यायवाची नामों में 'अपोह' शब्द प्रयुक्त हुआ है। इससे प्रतीत होता है कि अपोह ईहा के उत्तरवर्ती ज्ञान रूप था। षटखण्डागम में इन पर्यायवाची शब्दों का अर्थ प्राप्त नहीं होता है, लेकिन धवलाटीका में अर्थ को स्पष्ट किया गया है, जो निम्न प्रकार से है - धवलाटीका के अनुसार जिस बुद्धि से संशय का नाश हो वह ईहा है, अप्राप्त अर्थ को विशेष जानने वाला तर्कज्ञान ऊह है। संशय सम्बन्धी विकल्प का निराकरण हो वह अपोह है। अर्थविशेष का अन्वेषण (खोज) करना मार्गणा है, जिसके द्वारा गवेषणा की जाती है, वह गवेषणा है और अर्थ की विशेष रूप से विचारणा करना मीमांसा है 90 अवाय का स्वरूप मतिज्ञान के तीसरे भेद के स्वरूप का निरूपण करते हुए कहा गया है कि ईहा के द्वारा सम्यग् विचार किये गये पदार्थ का सम्यग् निर्णय करना-अवाय है। आवश्यकनियुक्ति के अनुसार जिसमें में निर्णय (व्यवसाय) होता है, वह अवाय है। अत: इसकी परिभाषा स्पष्ट रूप से तत्त्वार्थभाष्य में प्राप्त होती है। उमास्वाति के अनुसार - "अवगृहीते विषये सम्यगसम्यगिति गुणदोषविचारणा अध्यवसायापनोदोऽपायः" अर्थात् अवग्रह की विषयभूत वस्तु सम्यक् है कि असम्यक्, इस सम्बन्ध में गुणदोष का विचार करके एक विकल्प का त्याग करना अपाय है।392 पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि में कहा है कि विशेष के निर्णय द्वारा जो यथार्थ ज्ञान होता है, उसे अवाय कहते हैं।393 जिनभद्रगणि के अनुसार - 1. 'तस्सावगमोऽवाओ' अर्थात् ईहित पदार्थ का निश्चयात्मक अवगमन अपाय है।94 2. यह शब्द मधुर है, स्निग्ध है, इसलिए यह शंख का ही होना चाहिए, श्रृंगी वाद्य का नहीं, इस प्रकार अन्वय धर्मों और व्यतिरेक धर्मों के आधार पर किया जाने वाला निश्चयात्मक ज्ञान अवाय है।95 वादिदेवसूरि के मन्तव्यानुसार - "ईहितविशेषनिर्णयोऽवायः 1396 अर्थात् जाने हुए पदार्थ में विशेष का निर्णय हो जाना अवाय है। यह मनुष्य दक्षिणी होना चाहिए' इतना ज्ञान ईहा द्वारा हो चुका था, उसमें विशेष का निश्चय हो जाना अवाय है। जैसे 'यह मनुष्य दक्षिणी ही है।' मलधारी हेमचन्द्र ने बृहद्वृत्ति में उल्लेख किया है कि विशिष्ट अवसाय, व्यवसाय या निश्चय हो जाना अवाय है, यह निश्चय पदार्थों का होता है, जैसे कि ईहा के बाद ईहा से विचारित पदार्थ का निर्णय होना कि यह वृक्ष ही है, यह अपाय और अवाय कहलाता है।97 388. आवश्यकनियुक्ति गाथा 12 21, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 396, 561 389. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 397, 563 390. धवला पु. 13, सू. 5.5.28 पृ. 242 391, आवश्यकनियुक्ति गाथा 3, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 179 392. तत्त्वार्थभाष्य 1.15 393. विशेषनिर्ज्ञानाद्या-थात्म्यावगमनमवायः। -सर्वार्थसिद्धि 1.15 394. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 180 395. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 290 396. प्रमाणनयतत्त्वालोक, सूत्र 2.9 397. तयेहितस्यैवाऽर्थस्याऽर्थस्य व्यवसायस्तद्विशेषनिश्चयोऽपायः। -मलधारीहेमचन्द्र बृहद्वृत्ति, गा० 178-180, पृ. 90-91
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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