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________________ [146] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन हैं, क्योंकि औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी इन बुद्धियों में भी पदार्थ का (विषय का) ग्रहण, विचारणा, निर्णय और धारणा होती ही है। अतएव उक्त चारों बुद्धियाँ भी अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणात्मक होने से अवग्रहादि से अभिन्न हैं अथवा 'सामान्य रूप में मति ज्ञान, श्रुत का अनुसरण करने वाला है। किन्तु ये चार बुद्धियाँ ग्रंथ आदि रूप श्रुत का अनुसरण करने वाली नहीं हैं।' इस विशेष बात का ज्ञान कराने के लिए ही सूत्रकार ने पहले मतिज्ञान के श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रितये दो भेद किये और चारों बुद्धियों को अश्रुतनिश्रित में-श्रुतनिश्रित अवग्रहादि से भिन्न करके बतलाया। अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान के भेद अश्रुतनिश्रित के चार भेद होते हैं - 1. औत्पातिकी 2. वैनयिकी 3. कार्मिकी तथा 4. पारिणामिकी 187 भगवती सूत्र में इन चार प्रकार की बुद्धियों को अरूपी बताते हुए वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से रहित बताया है।182 भगवती में अवग्रहादि चार और औत्पातिकी आदि चार बुद्धियों को आत्मा रूप में स्वीकार किया है।183 इस प्रकार चार बुद्धियों को ज्ञान रूप तो स्वीकार किया है, लेकिन इनका मतिज्ञान के भेदों के रूप में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। स्थानांग सूत्र में अवग्रहादि चार का सम्बन्ध मति के साथ किया है, लेकिन औत्पातिकी आदि चार बुद्धि का नहीं।14 आवश्यकनियुक्ति में भी मतिज्ञान के भेद के रूप इनका उल्लेख नहीं है।185 इस प्रकार नियुक्ति काल तक तो इनका उल्लेख मतिज्ञान के भेदों के रूप में नहीं हुआ था, मतिज्ञान के भेदों के रूप में सर्वप्रथम इनका ऐसा उल्लेख नंदीसूत्र में प्राप्त होता है।186 धवलाटीका में औत्पातिकी आदि चार बुद्धियों का प्रज्ञा के भेदों के रूप में उल्लेख हुआ है।187 आवश्यकनियुक्ति में औत्पातिकी आदि चारों बुद्धियों के लक्षण दिए हैं। इन चारों बुद्धियों के स्वरूप आदि का उल्लेख नंदीसूत्र में विस्तार से किया गया है। विशेषावश्यकभाष्य (स्वोपज्ञ) में नंदीगत बहुत सी गाथाएं मिलती हैं। इन चारों बुद्धियों को कथानकों के माध्यम से समझाया है, लेकिन नियुक्ति, नंदीसूत्र और नंदीचूर्णि और हारिभद्रीय वृत्ति में चार बुद्धि के कथानक के नाम निर्देश मात्र हैं, जिनभद्रगणि88 आवश्यकचूर्णि और नंदीसूत्र टिप्पण (चन्द्रसूरिकृत) में ये कथानक संक्षेप में मिलते हैं। मलयगिरि ने इन कथानकों का विस्तार से वर्णन किया है।189 बुद्धियों का स्वरूप निम्न प्रकार से हैं1. औत्पातिकी जो बुद्धि अन्य किसी भी कारण के बिना तथाविध पटु क्षयोपशम से स्वत: उत्पन्न हो, वह 'औत्पातिकी बुद्धि' है अर्थात् जिस बुद्धि के द्वारा जिसे पहले कभी घटित होते हुए आँख से देखा नहीं, कभी किसी जानकार से उस विषय में कुछ सुना भी नहीं और मन से भी कभी उस विषय पर विचार नहीं किया, ये तीनों कारण नहीं हों और जो केवल क्षयोपशम मात्र से उत्पन्न हो, वह विषय भी तत्क्षण-बिना विलम्ब के तत्काल समझ में आ जाता है और वह भी विशुद्ध रूप में समझ में आ जाता है, उसे 'औत्पातिकी बुद्धि' कहते हैं। 90 181. पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 102, विशेषा० भाष्य गाथा 177 182.भगवतीसूत्र श. 12 उ. 5, पृ. 175, स्थानांगसूत्र 4.4. पृ. 431 183. भगवतीसूत्र श. 17 उ. 2 पृ. 613 184. स्थाांगसूत्र 4.4. पृ. 431-432 185, आवश्यकनियुक्ति गाथा 938, विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञ गाथा 3596 186. ज्ञानबिन्दुप्रकरण, परचिय पृ. 24-25 187. धवला, पु.१,सू. 4.4.18, पृ. 82 188. विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञ गाथा 3603 189. मलयगिरि पृ. 145 190. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 939, विशेषावश्यकभाष्य, स्वोपज्ञ गाथा 3599
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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