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________________ (xiv) 246 246 246 248 248 248 248 249 250 250 251 251 251 252 252 252 . 253 . नय का 253 . 253 संज्ञाओं के स्वामी संज्ञाओं का क्रम तत्त्वार्थसूत्र की परंपरा सम्यक् श्रुत-मिथ्या श्रुत सम्यक् श्रुत के प्रकार मिथ्याश्रुत के प्रकार सम्यक् श्रुत के रचयिता मिथ्याश्रुत सम्यकदृष्टि के किस रूप में होते हैं सम्यक्त्व के भेदों का स्वरूप औपशमिक समकित सास्वादन समकित क्षयोपशम समकित वेदक समकित क्षायिक समकित मत्यादि पांच ज्ञानों में कितने ज्ञान मिथ्यारूप होते हैं सम्यक्त्व और श्रुतज्ञान में अन्तर सादि श्रुत, अनादि श्रुत, सादि सपर्यवसित श्रुत और अनादि अपर्यवसित श्रुत नय की अपेक्षा से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से भवी-अभवी जीव की अपेक्षा से गमिक श्रुत-अगमिक श्रुत अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य अंग शब्द की व्यत्पुत्ति अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य का स्वरूप उत्तरकालीन आगम विभाजन अंगबाह्य की रचना का उद्देश्य अंगप्रविष्ट की रचना का उद्देश्य अंगबाह्य के दो भेद आवश्यक का स्वरूप और भेद आवश्यक व्यतिरिक्त के भेद . कालिक सूत्र के भेद उत्कालिक सूत्र के भेद दिगम्बर परम्परा में अंगबाह्य के भेद प्रकीर्णक ग्रन्य नंदीसूत्र में प्रकीर्णक की संख्या के विषय में दो मत आगमकालीन मत वर्तमान में प्रकीर्णकों की संख्या अंगप्रविष्ट के भेद 256 257 257 257 258 260 260 260 261 261 261 262 262 263 263 263 264 264 265
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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