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________________ ( २११ ) स्वातित्रिके निजं भागं शोधयत्यर्थपद्धतौ । अस्तमितः प्रतीच्यां चेदुदेति पूर्वतः पुनः ११४७ ॥ तदा पञ्चसु ज्येष्ठादौ पञ्चमं भाग क्षिपेत् । यावन्तो ग्रहयोगास्ते तावत्संख्याः पृथक पृथक् । गुणाकारो भवेनावान् भागाहारोऽपि तादृशः ॥ ११४८ ॥ इत्यर्घकाण्डम् उदिताद्या ग्रहा यत्र धिष्ण्ये तिष्ठन्ति संस्थिता । तन्नक्षत्रतत्राशेश्च संख्यां संमील्य तावतीम् ॥ ११४९ ।। हन्तव्या तद्रहेणैव द्विस्थं गशिं ततः कुरु । द्विस्थस्याधः स्थितं गतिं चैत्रापेण तु तं भजेत् ॥ ११५० ॥ यल्लब्धं तेन खेटेन त्वेकीकृत्यापि मूलके । पिण्डे भागम्तु हर्तव्यो लब्धमघस्ततो भवेत् ॥ ११५१ ।। स्वाती त्रिक नक्षत्र में अपने माग को घटायें, यदि पश्चिम में अस्त होकर पूर्व में उदित हो तो ज्येष्ठा प्रादि के पांच नक्षत्र में पत्रम भाग को क्षेप करें। जिनने संख्यक प्रह योग हो उतने संख्यक पृथक पृथक गुणक या मागहार भी होते हैं ।।११४७-११४८ ।। इत्यर्घकाण्डम् उदितादि प्रह जिस राशि और नक्षत्र में हों उस राशि नपत्र की संख्या को एकत्र करें ॥११४६।। उसको उस प्रह की संख्या से गुणा कर दो जगह स्थापित करें उसमें अधःस्थिस राशि को चैत्रार्घ से भाग देवें ॥११५०।। ___जो लब्ध हो उसमें मह को मिलाकर फिर पिएट में भाग दें तो सन्घ अर्घ होगा ॥११५॥ 1.बाय for त्राण Bh. 2. वां for a Bh,
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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