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________________ ( २०६ ) त्रिशतषष्टिपण्यानां चतुर्भेदवतामपि । प्रत्येकं गणितादीनां चैत्रार्घेणैव निश्वयः ।। १११७ ॥ वाणीदेवीप्रसादाच्च गुरोः शुद्धोपदेशतः । सत्यो भवति शास्त्रार्धी नु भवन्नेव निश्चयः ।। १११८ ॥ वक्रं याति ग्रहः कश्चिदश्विनाषाढयोर्यदि । कर्कतोऽलिनि संक्रान्तौ कर्क तुलाघसंभवः । १११९ ॥ मृगश्चित्रा धनिष्ठा च पुनर्वसू च वासवम् । शताख्यं चाग्निदेवं च पञ्चत्रिंशच्छतं भवेत् ॥ ११२० ॥ अश्विनी भरणी कर्णा स्वातिश्च नवतिः पुनः । विशाखा रोहिण पौष्णं शतं सार्द्ध बुधैः स्मृतम् ||११२१॥ आर्द्रानुरोधिकाधिष्ण्यशतं विंशतिमिश्रितम् । 1 अधिकं पञ्चसप्तत्या पुष्यं हस्तं शतं स्मृतम् ।। ११२२ ॥ तीन सौ साठ पण्यों का तथा उस के चारों भेदों का प्रत्येक के गणितादि का विश्वार चैत्रार्ध से ही निश्चित होता है ।। १११७ ॥ सरस्वती देवी की प्रसन्नता से तथा गुरु के शुद्धोपदेश से अर्थ शास्त्र निश्चय सत्य होता है ।। १११८ ।। श्विन, आषाढ़ में तुल, कर्क के संक्रान्ति में कोई ग्रह वक्री हो यो फर्क तुला कर अर्ध सम्भव होता है ।। १११६ ॥ मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा, पुनर्वसु, धनिष्ठा, शतभिषा, कृतिका इन नक्षत्रों की एक सौ पैंतीस संख्या होती है ॥ ११२० ॥ अश्विनी, भरणी, श्रवणा, स्वाति, इन नक्षत्रों की ६० संख्या होती है, विशाखा, रोहिणी, रेवती, इन नक्षत्रों की १५० संख्या होती है ॥ ११२१ ॥ अनुराधा, आर्द्रा, में १२० संख्या, और तथा हस्त, नक्षत्र में १७५ संख्या होती है, ।। ११२२ ।। 1. श्रार्द्रानुराधाधिष्ण्यं च for आर्द्रानुराधिकाविन्य A. A1.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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