SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १ ) किं वा नयतु यामेषु वातानादि शुभं भवेत् ।। तस्यां च दिशि संपूर्ण सहिनेऽप्यखिले जलम्॥१०२९॥ आषाढ्यां घटिकापछयां मासद्वादशानिर्णयः । द्वादश पञ्चका षष्ठिरित्त्येवं क्रममादिशेत् ।।१०३०॥ पञ्चनाडी भन्मासः षष्ठया वर्णस्य निर्णयः । सर्पसत्रं यदाभ्राणि वातौ पूर्वोत्तरौ यदि ॥१०३शा तत्र वर्षे कणाः पुष्टा भवन्ति जगतीप्सिताः ।. यदि नाभ्रस्य लेशोऽपि वातौ पूर्वोत्तरौ नहि ॥१०३२॥ न वर्षति तदा देवो दुष्टकालो भवेदिह । यद्यभ्रं स्वल्पकं जातं मध्ये वातेपु वर्षति ॥१०३३॥ आये मासे यदाभ्राणि वातौ पूर्वोत्तरौ यदि । आद्य मासे भवेत्वृष्टिर्याञ्छितादधिका क्षितौ ॥१०३४॥ वा. मेष संक्रांति काल से नौ प्रहरों में जिस दिशा में शुभ वाय, मेघ, विद्यत हो तो, उस दिशा में आर्द्रा आदि क्रम से उस नक्षत्र में वर्षा होती है ।। १०२६ ॥ आषाढ़ी पूर्णिमा में साठ घटी पर से द्वादश मासों का निर्णय करें, साठ पढ़ी को द्वादश भाग करने पर पांच पांच घटी के क्रमसे आदेश करें ॥ १०३०॥ पांच घटी से एक मास का तथा साठ पटी से वर्ष अ निर्णय करें, यदि सम्पूर्ण रात्रि मेघ, तथा पूर्वी उत्तरी वायु बहे तो॥ १०३१ ___ उस वर्ष में अभीप्सित धान्य होता है, और यदि भाषाही में मेष कालेश भी नहीं हो तथा पूर्वी, उत्तरी वायु नहीं बहे ॥ १०३९ ।। , बोन्द्र वर्षा नहीं करते हैं और दुष्ट काल होता है, बदियोमी मेष, तथा वायु कहे तो वर्षा होती है ॥ १०३३ ।। यदि पहले मास के घटी विभाग में मेव, बा पूर्वी मी वायु पहे से पहले मास में इच्छा से अधिक वर्षा होती है ।। १०३४ ।। 1. तस्यां च विशि for यस्यां दिशि च A. 2. षष्ठयां for पठया A, Bh. 3. वर्षय for पर्यस्य Bh. 4. मेघो for देखो.A,
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy