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________________ (१८७ ) राशिधिष्ण्ये त्रिके पूर्वे ग्रहाः सर्वे भवन्ति चेत् । महासौस्थ्यं सदा भूम्यां सौम्यवक्रे महोत्सवः || २००७ ॥ इत्यर्धकाण्डम् | त्रिपञ्चकयोगो दर्शितः । साम्प्रतं द्वितीय राशि पद्धत्या त्रिकपञ्चकयोगौ प्रतिघट्टयन् सांवत्सरिकमप्यर्ष प्रतिपादयति 1 भानुवक्रतमः कोडास्तृतीयस्था गुरोर्यदि । सुभिक्षं जायते सत्यमीदृशे योगसंकटे ॥१००८ || aalasafararacarरः क्ररखेचराः । तृतीयस्था: शनेरेते सौस्थ्यसद्भिक्षकारकाः || १००९ || भानुवक्रतमः क्रोडाः पञ्चमस्था गुरोर्यदि । दुर्भिक्षं जायते तत्र घोरं योगे समागते ॥ १०१०|| मानुवक्रतमः क्रोडा द्विपञ्चनवतगाः । द्वादशस्था गुरोरेते मञ्जन्ति सकलं जगत् ॥ १०११॥ त्रिक राशि नक्षत्र में सब ग्रह हों तो पृथ्वी पर महान स्मैस्थ्य होता है और शुभ ग्रह वक्री हो तो महान् उत्सव होता है ||१००७॥ मक्षत्र पद्धति से त्रिक पञ्चक योग दिखाया, अब द्वितीय राशि फद्धति से त्रिक पञ्चक योग को कहते हुए संवत्सर का अर्थ काड कहते हैं । यदि सूर्य, मंगल, राहु, ये गुरु से तृतीय में हों तो ऐसे बोग संकट में सुमित होता है ॥१००८ || राहु, मंगल सूर्य आदि के चार पापग्रह तृतीय में हों तो स्वस्थता तथा सुभिक्ष को करते हैं || १००६ ॥ यदि गुरु से सूर्य, मंगल, राहु, ये पंच में हों तो ऐसे योग में तु होता है ।।१०९० ॥ यदि गुरु से सूर्य, मंगल, राहु, ये पापग्रह द्वितीय, सप्तम, नवम द्वादश में हों सम्पूर्ण संसार को नष्ट करता है ||११| 1. antes for nigas A, A1. 2. पचमस्था for तृतीयस्था A, Á1.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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