SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८४ ) मेषादित्रित सूर्ये शुभयुक्ते तिथिक्षये । 1 कर्णादौ पूर्णिमायोगे मह तु हठाद्भवेत् ।। ९९१ ॥ स्वातिमुख्याष्टमे जीवे अश्विन्यादित्रिकेऽपि वा । शनिराहुकुजेश्ववं प्रत्येकं सहितो भवेत् ।। ९९२ ।। सञ्चरन्ति यदा काले सुभिक्षं जायते क्षितौ । मृगादिदशके जीवे धनिष्टापञ्चवेऽपि वा ।। ९९३ ॥ भौमादिसहितो गच्छेद् दुर्भिक्षं तत्र जायते । 2 एकराशिगत चैवमेकक्षं च महद् भवेत् ।। ७९४ ।। त्रिपञ्चकयोग विस्तरतो व्याख्यायेते । स्वात्याद्यष्टक संयुक्तमश्विन्यादित्रिकं पुनः । त्रिकसंज्ञं बुधर्वाच्य मघ काण्डं विशारदः ।। ९९५ । मेषादि, तीन राशि मे शुभ युक्त सूर्य हो और तिथि क्षय हो और पूर्णिमा मे श्रवणा आदि नक्षत्रों का योग हो तो हठत् महर्ष होता है ||१|| स्वाती आदि के आठ नक्षत्रों मे वा अश्विन्यादि तीन नक्षत्रों मे बृहस्पति हो और शनि, राहु, मंगल इन प्रत्येक ने युक्त हो ||२|| पूर्वोक्तयोग विशिष्ट गुरु जब सञ्चार करे उस काल में पृथ्वी मे सुभिक्ष होता है, मृगशिरा आदि के दश नक्षत्र मे वा धनिष्ठा, आदि के पांच नक्षत्रों में बृहस्पति ॥ ६६३ || मंगल, शनि, राहु से युक्त गुरु पूर्व नक्षत्र में संचार करें तो दुभ होता है, यदि ये एक राशि में हों तो एक वर्ष पर्यन्त महान् भय होता है ||६६४ || अथ त्रिकपञ्चकयोगौ विस्तरतो व्याख्यायेते स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ, उत्तराषाढ श्रवणा, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, इन नक्षत्रों का त्रिक संज्ञक, अर्धकाण्ड निपुण पंडित कहते हैं ||६६५॥ 1. A. adds: - धनुर्म कर कुंभेषु यत्क्रीतं धान्य जीवनम् । तत्कर्क मिथुने देयं पतिता सितपंचमी ॥ 2. मेत्र tol मेक Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy