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________________ . ( १७६ ) एतेषां दक्षिणे मार्गे यदा चरति चन्द्रमाः । क्षयं गच्छन्ति भूतानि दुर्भिक्षं च भयं भवेत् ॥९६३ ॥ शुक्रोस्तमयते मासे फाल्गुने यदि निश्चितः । तदा दुर्भिक्षमादेश्यं षण्मासावधि धीमता ॥ ९६४ ॥ चैत्रे तु स्याद्धले तुल्यो वैशाखेन चतुष्पदम् । ज्येष्ठे करोति वृष्टिं वा प्याषाढे जलशोषणम् ॥ ९६५ ॥ श्रावणे दधिदुग्धैस्तु भुवं सिञ्चति मेघतः । भाद्रपदे धनधान्य मेंघो हर्षात्प्रमोदते ।। ९६६ ॥ आश्विनेऽपि सुखैभव्यो वृष्टिं करोति कार्तिकः । मार्गे च विग्रहो घोगे निश्छत्रं पौषमाघयोः ॥९६७ ॥ इति शुक्रास्तफलम् । समर्पयोगा एते । इन पूर्वोक्त नक्षत्रों के दक्षिण मार्ग से चन्द्रमा यदि संचरगा करे तो प्राणियों का क्षय, दुर्भिक्ष और भय होता है ।।६६३।। यदि शुक्र फाल्गुन मास में अस्त को प्राप्त करे तो छ: मास पर्यन्त दुर्भिक्ष होगा ऐसा बुद्धिमान आदेश करें ।।६६४॥ यदि चैत्र में शक्रास्त हो तो बल का आधिक्य होता है. वैशाख में हो तो चतुष्पद की वृद्धि, और ज्येष्ठ में शुक्रास्त हो तो वर्षा होती है, आषाढ़ में हो तो जल को सुखाता है ।।६६५।। __ श्रावण मास में यदि शुक्रास्त हो तो मेघ से दधि दुग्धों की वर्षा से पृथ्वी का सेचन होता है, और भाद्रपद माम में हो तो बहुत धन धान्य होता है । जिस से लोग हर्षित होकर अानन्द से रहते हैं ।।६६६।। ___आश्विन में हो तो बहुत सुख पूर्वक आनन्द से लोग रहते हैं, और कार्तिक में शुक्रास्त होने से वर्षा होती है अग्रहण में हो तो घोर विप्रह होता है, और पौष माघ में होने से निश्छत्र होता है ।।६६७॥ इति शुक्रास्तफलम् । 1 आयो for भयं Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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