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________________ लामे शुक्रे महालामः प्रतिवेश्म निरपि । व्यये तत्र महारंगात्स्त्रीरंगाच महाव्ययः ॥९२३॥ इति शुक्रफलम् । बुधे मूर्ती सकौटिल्यो धने च कपटादनम् । तृतीये कुटिला वाणी तुर्ये शिल्पिषु कौशलम् ॥९२४॥ पञ्चमे कुटिला बुद्धिः षष्ठे कुलादिविग्रहः । घने कुटिलसंग्रामस्त्वष्टमे भोजनानुजा ॥९२५।। नवमे कपटाद् धर्मो दशमे शिल्पिनां पदम् । एकादशे भवेल्लाभः अन्ते पूर्वधनव्ययः ॥९२६॥ इति बुधफलम् । भौमः पञ्चदिनान्मूता स्वक्षेत्र चोच्चगः शुभः । स्वहानि तनुते वित्ते भौमः पञ्चदिनावधि ॥९२७।। यदि लाभ स्थान में शुक्र हो तो निधि का भी महान लाभ होता है. प्रत्येक घर में विचार करें, यदि व्यय स्थान मे हो तो महान रंग से या स्त्री के रंग से धन का व्यय होता है ।।१२३।। इति शुक्रफलम् यदि लग्न में बुध हो तो कुटिल होता है, और धनस्थान में हो तो कपट से धन प्राप्त करता है, तृतीय में हो तो उसकी कुटिल बात होती है, चतुर्थ में हो तो शिल्पकला में कुशल होता है ।।१२४॥ पश्चम में हो तो उसकी कुटिल बुद्धि होती है, षष्ठ में हो तो विग्रह हो, सप्तम में हो तो कुटिलता से संपाम होता है, अष्टम में हो तो भोजन से रोग होता है ।।१२।। नवम में हो तो कपटता से धर्म हो, दशम में हो तो शिल्पियों का पद प्राप्त करे, और एकादश में हो तो लाभ होता है, द्वादश में हो तो पूर्व धन का व्यय होता है ॥२६॥ इति बुधफलम् । मंगल, यदि उन तथा स्वगृही का होकर मन में हो तो पांच दिनों में शुभ होता है, और वह यदि धन में हो तो पांच दिन पर्यन्त अपनी हो हानि करता है ।।६२७॥
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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