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________________ ( १५५ ) तुलावृषभकर्केषु शुक्रेन्दुयुतदृष्टिषु । वधूलाभो भवत्येव द्यूने वा सबले रखौ || ८३३ ।। शुभा केन्द्रत्रिकोणस्था बुधक्षं स्मरगेहगम् । . नीलाभाय पश्यन्तस्त्र्यंशस्त्रीगेहगास्तथा || ८३४ || कनीद्रेष्काणगोलग्ने कन्या लग्ने नवांशके । वीक्षिते सोमशुक्राभ्यां कन्यालाभो ध्रुवो मतः ।। ८३५ ।। शुक्रेन्द्र समराशिस्थौ स्त्रीद्वेष्काणनवांशकौ । 3 सवयी मूर्तिधीस्वस्था कन्यालाभाय निश्चितौ || ८३६ स्मरस्वोपचये चन्द्रे कन्याप्तिर्गुरुवीक्षिते । प्राप्या कन्या समे मानौ पतिलाभोऽन्यथा स्त्रियाम् ॥। ८३७|| तुल, वृष, कर्क, लग्नों में शुक्र, चन्द्रमा दोनों का योग तथा दृष्टि हो वा सबल रवि सप्तम में हो तो स्त्री का लाभ होता है || ८३३ || बुध की राशि ( मिथुन, कन्या, ) सप्तम भाव में हों और इस भाव के त्रिशांश पर, केन्द्र, और त्रिकोगास्थित शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कन्या का ही लाभ होता है ।। ८३४ ॥ कन्या लग्न में कन्या का ही द्रेष्काण तथा नवमांश लग्न में हो और चन्द्रमा, शुक्र दोनों से देखे जाते हों तो ध्रुव कन्या का लाभ होता है । ८३५ ॥ शुक्र, चन्द्रमा, सम राशि का हो कर कन्या राशि का द्रेष्काया, नवमांश में हो तथा बल से युक्त होकर लग्न पंचम, धन, स्थान में हो तो कन्या का लाभ होता है ।। ८३६ ॥ चन्द्रमा, सप्तम तथा उपचय में हो उस पर गुरु की दृष्टि हो तो कन्या की प्राप्ति होती है, सम राशि में सूर्य हो तो कन्या की प्राप्ति होती है, और स्त्री की कुण्डली में विषम राशि में सूर्य हो तो पति प्राप्त होता है ॥ ८३७ ॥ 1. So Bh· कन्या mss 2. पश्यन्तः स्त्रीशा Bh. 3.०श० for ० स्वo Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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