SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४१ ) उपभुङ्क्ते नृपः सौख्यं हृष्टा भूमिर्न चेतयः । निर्भया मुदिता लोका उत्पाते भूमिमण्डले ।। ७५७ ।। बहुदुग्धयुता गावो बहुपुष्पफला द्रुमाः । आरोग्यं जायते भूमावुत्पाते जलतत्वजे ।। ७५८ ।। धनक्षयो भयं वोरं पीडारोगोऽल्पनीरता । अग्न्याह मण्डलोत्पाते फलदुग्धादितुच्छता ।। ७५९ ।। आग्नेये पीड्यते याम्या वायव्ये पुनरुत्तरा । वारुणे पश्चिमा सौख्यं पूर्वा माहेन्द्रमण्डले || ७६० ॥ मीनसंक्रान्तिकाले च पौष्ण्यभोग्ये दिने यदि । यत्र विद्युत् शुभो वातस्तत्र गर्भो ध्रुवो मतः ॥ ७६१ || मेष संक्रान्तिकाला नवस्वपि दिनेष्वपि । यत्राभ्रं वातविद्यत्स्याद्देवेन्द्रस्तत्र वर्षति || ७६२ ।। यदि भूमि महल में उत्पात हो तो राजा प्रसन्न भूमि को सौख्य पूर्वक उपभोग करते हैं और ईति का उपद्रव नहीं होता है और लोक सब प्रसन्न और निर्भय रहते हैं ।। ७५७ || जल तत्व में उत्पात होने से गौ बहुत दुग्धवती होती है और वृक्ष बहुत फल पुष्प से संयुक्त होते हैं। आरोग्य पूर्वक सत्र रहते हैं ।। ७५८ ॥ मण्डल में उत्पात हो तो धनक्षय, भय, बहुत पीड़ा, रोग, स्वल्प जल और फल, दुग्धादि में अल्पता होती है ।। ७५६ ॥ आग्नेय मण्डल में दक्षिण दिशा में पीड़ा होती है, वायव्य मण्डल में उत्तर दिशा में पीड़ा होती है और जल मण्डल मे पश्चिम दिशा में सौख्य होता है और माहेन्द्र मण्डल में पूर्व दिशा में सौख्य होता है ।। ६६० ।। संक्रांति में उस दिन में रेवती नक्षत्र हो, उस में जहां पर विद्यत और शुभ वायु बहे तो वहां निश्चय गर्भ समझना चाहिये ||७६१ || मेष संक्रांति काल से नौ दिनों में जहां पर, बादल, वायु, विद्यत् हो वहां पर इन्द्र वर्षा करते हैं ।। ७६२ ।। 1. फलं पुष्पादि A1.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy