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________________ ( १३७ ) चरे लग्ने धने सौम्ये मासतो दृष्टिरुचमा । जललग्ने शुभैर्युक्ते सद्यो वृष्टिर्जलग्रहैः ॥ ७३४ ॥ वृष्टिप्रश्ने स्थिरे मूर्ती द्विर्द्वादशभिर्दिनैर्भवेत् । द्विस्वभावो यदा प्रश्नः षटत्रिंशद्भिर्दिर्नर्जलम् ॥ ७३५ ॥ पृच्छाग्ने चतुर्थस्थौ शनिराहू युतौ पुनः । दुर्भिक्षं च महाघोरं तत्र वर्षे ध्रुवं भवेत् || ७३६ || अत्र वर्षे दिशो भंगः कस्या अपि भविष्यति । कस्यां वा सस्यनिष्पत्तिरिति प्रश्ने कृते सति ॥ ७३७ ॥ चतुर्णामपि केन्द्राणां मध्ये यत्र शुभग्रहः । तस्यां च सस्यनिप्पत्तिः सुभिक्षं च प्रजायते ॥ ७३८ ॥ यस्यां दिशि शनिः पुष्टः करे रेव निरीक्षितः । दिशि तस्यां बुधैर्वाच्यं दुर्भिक्षं त्वीतिसम्भवम् ७३९ ॥ यदि वर्षा प्रश्न में चर लभ हो, धनस्थान में शुभग्रह हो तो एक मा तवृष्टि होती है और जलचर राशि लन हो उसमें शुभ ग्रह से • युक्त जल स्वभाव के ग्रह हों तो सद्यः वृष्टि होती है ।।७३४ || वर्षा प्रश्न में पूर्वयोग में यदि स्थिर राशि लग्न हो तो चौबीस दिन में, और द्विःस्वभाव राशि लग्न में हो तो छत्तीस दिन में वृष्टि होती है ।।७३५|| प्रश्न लग्न में चतुर्थ स्थान में यदि शनि, राहु हों तो उस वर्ष में महाघोर दुर्मित होता है ।। ७३६ ।। इस वर्ष में कब किस दिशा का मंगल होगा और किस दिशा में धान्यादि होगा ऐसा प्रश्न करने पर || ७३७ ॥ ari केन्द्रों में जहां पर शुभ ग्रह हों वहां उस दिशा में धान्य की निष्पत्ति होगी और सुभिक्ष होगा ॥ ७३८ ॥ जिस दिशा में क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो कर पुष्ट शनि स्थित हो उस दिशा में ईति होने के कारण दुर्भिक्ष होगा ऐसा फल पंडित कहें। ईति का का लक्षण जैसे संहिता ग्रंथों में लिखा है " अतिवृष्टिरनावृष्टि मूषकाः शलमाः शुकाः ॥ प्रत्यासन्नाश्च राजानः षडैता ईतयः स्मृताः ॥ ७३६ ॥ 1. कस्यां दिशि for कस्या अपि Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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