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________________ (३५) जललग्नं ग्रहयुक्तं सजलजलदायकम् सजलैलग्नखेटैश्चाप्यंशस्थैर्वा धनं जलम् ॥ ७२२ ॥ शुक्लपक्षे शशी दृष्टोऽथवा युक्तो यदाशुभैः। लग्नस्थो जलराशिस्थः केन्द्रस्थो वा जलार्पकः ॥ ७२३॥ चेत्कर्कमृगमीनाःस्यु केन्द्रस्थाः करवर्जिताः । पूर्णेन्दुशुक्रदेवेज्यबुधैर्युक्ता बलान्विताः ॥ ७२४॥ वृष्टिरेवविधे योगे वीतरागेण भाषिता । लग्नासुर्ये यदि स्थाने शुक्रन्दुगुरुचन्द्रजाः ॥ ७२५ ॥ एवंयोगे महावृष्टया शुभकालः सतां मतः । कण्टवेऽप्यन्यलग्नेषु शुभलग्नेषु सर्वतः ॥ ७२६ ॥ पादोनवृष्टिरादेश्या क्रूरयुक्तंष्ववर्षणम् । अन्ये च संशयः केन्द्र शुष्कसाम्बुग्रहे युताः ।।७२७ ।। जलचर राशि लम हो उस में जल स्वभाव के ग्रह हों तो न होता है वा जल स्वभाव क ग्रह जल चर राशि के लम में हों वा उस के अंश में हो तो बहुत जल होता है ।। ७२२ ।। प्रश्न काल में जलचर राशि लग्न में वा केन्द्र में हो, उस में शुभग्रहों से दृष्ट वा युक्त शुक्लपक्ष क चन्द्रमा स्थित हों तो जल होता है ।।७२।। यदि कर्क, मकर, मीन, राशि केन्द्रों में हो और उन में पाप ग्रह नहीं हो तो और पूर्ण चन्द्रमा, शुक्र, बृहस्पति, बुध इन शुभ ग्रहों से युक्त हो तथा बल से युक्त हो । ७२४ ॥ इस प्रकार के योग में वर्षा होती है यह मुनियों की उक्ति है यदि लग्न से चतुर्थ स्थान में शुक्र चन्द्रमा, गुरु, बुध हा ता ।। ७२५ ।। इस प्रकार के योग में बहुत वृष्टि होने के कारण शुभ काल होगा ऐसा सज्जनों का मत है । केन्द्र के और राशि अर्थात सप्तम दशम, में शुभ ग्रहों का योग तथा दृष्टि हो तथा बल युक्त हो तो ।। ७२६ ॥ पादोन वृष्टि कहनी चाहिये और कर ग्रह का योग तथा कोई प्रकार का सम्बन्ध हो तो वृष्टि नहीं होती, और केन्द्रों में यदि जलचर से अन्य राशि हो उस में सजल तथा शुष्क मह बैठा हो तो ॥ ७२७ ॥ 1. लमं तुयें for लात्तुयें ms. 2. युक्तेषु for जनेषु A1, Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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