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________________ ( १२५ ) अथ छिद्रे प्रवहणप्रकरणम् कुशलागमनं पूर्वं लाभोऽपि व्यवहारतः । 3 बुडनं वपनं चाथो नावि प्रश्नचतुष्टयी ।। ६६९ ।। लग्नं पश्यति लग्नेशः छिद्रं छिद्रेश्वरो यदि । 4 न बुडति तदा पोतो लाभो भवति चिन्तितः ।। ६७०॥ पापमप्तमे यदि तिष्ठतः । तदा प्रवणप्रश्ने ध्रुवं वापनिका भवेत् ।। ६७१ ।। अस्तं गतोऽपि लभेशो लग्ने तुर्ये तथाष्टमे । 6 7 क्रशस्तिष्ठन्ति पृच्छायां म्रियते पोतपस्तदा ।। ६७२ ॥ विलग्नं नैव लग्नेशछिद्रं छिद्रपतिर्नच ॥ 8 9 पश्यतो यदि पृच्छासु तदासौ बुडति ध्रुवम् ।। ६७३ ।। नौका पर गमन करने वालों का चार प्रश्न होता है, पहला कुशलागमन, दूसरा व्यवहार में लाभ, तीसरा पोत का बुडना, चौथा वपन अर्थात वायु आदि से इधर उधर घूमते रहना ।। ६६६ || लमेश, यदि लग्न को देखें और अष्टमेश अष्टम भाव को देखें तो पोत नहीं बुडती है और व्यवहार से लाभ होता है ।। ६७०।। लग्नेश, अष्टमेश, यदि सप्तम में हो तो प्रवहण के प्रश्न ही नौका भ्रमण कर रही है ऐसा कहना चाहिये ।। ६७१ || लग्नेश अस्त हो और पाप ग्रह लग्न, चतुर्थ, अष्टम, में हो तो पोत के मालिक अवश्य ही मर जाते है ||६७२ ।। प्रश्न काल में लमेश यदि लग्न को नहीं देखे और अष्टमेश अष्टम स्थान को नहीं देखे तो पोत अवश्य ही बूड़ती है || ६७३ || में अवश्य 1. पृच्छा for प्रवहया A, A 1. 2. लामे च for लाभोपि Bh. 3. चतुष्टयम् for चतुष्टयी A 4. वित्तत: for चिन्तितः Bh. 5. वापनिकां वदेत for वापनिका भवेत् A. 6. मृत्यु: for म्रियते A. 7. पोतपते for पोतप० A. 8 पश्यति for पश्यतो Bh. 9. नौवसुनं for a gefa A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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