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________________ ( ११७ ) ग्रहशून्येऽष्टमस्थाने स्वभावसहितं पुनः । मार्ग यान्त्याथले 'खेटे पुष्पमायाति निश्चितम् ||६२८ || 2 'भौमरवी सदोष्णौ तु शीतमन्ये ग्रहाः पुनः । 3 कटिवातं वदेद्राहुः पीडाकर महर्निशम् ||६२९|| योनिस्थाने स्थिता एतेऽप्येवं कुर्वन्ति योषिताम् । ग्रहभावानुसारेण ज्ञेयं पुष्पं महात्मभिः ||६३० || इदमष्टमस्थाने प्रथम पुष्पप्रकरणम् । अथ दोषप्रकरणं साम्नायं सानुभूतं चोच्यते । 4 व्यये लग्नेऽष्टमे भानौ पीडकः क्षेत्रनायकः * । व्यये लग्ने रिपौ छिद्रे चन्द्रे ऽप्याकाशदेवता ॥ ६३१ ॥ यदि अष्टम स्थान में कोई ग्रह नहीं हो तो वह अपने वर्ग के समान ही होता है और अष्टम भाव में यदि चल ग्रह हो तो स्त्री को रास्ते में चलते चलते ही रजस्राव हो जाता है ||६२८ || मंगल, और रवि, सर्वदा उष्ण स्वभाव के ग्रह होते हैं और ग्रह शीत स्वभाव के होते हैं, राहु यदि अष्टम स्थान में हो तो कमर मे वात के उपद्रव से रात दिन पीड़ा करता है || ६२६|| योनिस्थान में स्थित होवें तो खियों को इसी प्रकार करते हैं, ग्रहों के भावों के अनुसार पंडित पुष्पों को समझें ||६३०|| इदमष्टमस्थाने पुष्पप्रकरणम् ॥ दोषप्रकरण को कहते हैं। सूर्य यदि व्यय, लग्न, अष्टम भावों में हो तो क्षेत्र पाल ही पीड़ा करने वाले होते हैं । और व्यय, लग्न, षष्ठ, श्रष्टम, इन भावों में चन्द्रमा हो तो आकाश देवता पीड़ा करते हैं ।। ६३१ || 1. खेटे for खोट A., खेटा: Bh. 2. भौमवीरं for भौमरवी A. 3. वदेबन्द्रे for वदेद्राहु: A. 4. ०पाल क: for oनायक: A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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