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________________ ___ महामारीभूमिः। ईश्वरसमीरकोणपव' हीन्द्रोत्तरापरयमेषु । वायोरक्षस्यनिलये चैत्राद्या उदिताः "क्रमात् ॥५९४॥ वटीचतुष्कसंभक्ते रुद्रभूमिरियं परा । पृष्ठस्था दक्षिणस्था च जयदा युधि भूभुजा ॥१९५।। रुद्रभूमिः । विलोमे पूर्वतो मासाश्चैत्राद्या दिग् चतुष्टये । प्रहारवाममार्गेण मासगेहाच्च गण्यते ॥५९६॥ क्षेत्रपाली महाभूमि र्वलानां बलोत्तमा । चातुरङ्गे कवौ केन्द्र जयदा वृष्टिदक्षिणा ॥५९७॥ यदलाबलयुक्तानि भृबलान्यपराण्यपि । एतद्लवियुक्तानि वृथा स्युश्चतुरशीत्यपि ॥५९८॥ इति क्षेत्रपाली। इति महामारी भूमिः ईशान, वायु, नैऋति, अग्नि, इन कोणों में तथा पूर्व. उत्तर पश्चिम, दक्षिगा इन दिशाओं में वायव्य कोण के क्रम से चैत्रादिक माम, चार चार घड़ी करके उदित रहते हैं इसको रुद्रभूमि कहते हैं। युद्ध में इस के पृष्ठ दक्षिणा कर के यात्रा करें तो राजा को जय होता है ।।५६४-६५॥ इति रुद्रभूमिः पूर्वादि चार दिशाओं में विलोम अर्थात पूर्व, उत्तर, पश्चिम, दक्षिणा के क्रम से चैत्रादि मास गणना करें, इसको क्षेत्रपाली महाभूमि कहते है, यह भूबलों में उत्तम बल है यदि शुक केन्द्र में हो और क्षेत्र पाली में पृष्ठ दक्षिण क्रम से यात्रा करें, तो जय होता है ।।५६६-५६७॥ ___ यदि भूबल के बल से युक्त भी हो परन्तु क्षेत्रपालीवल में यदि बलहीन हो तो चतुरशीति सेना से युक्त रहने पर भी वृथा परिश्रम होता है ॥५६॥ इति क्षेत्रपाली 1. ०होत्तरा for वह्वीन्द्रोत्तरा Bh. 2 रक्ष्यस्यनले for रक्षस्यनिलये Bh. 3. उदयः A. A1 4. दक्षिणामस्था for दक्षिणस्था A. 5. भूभुजाम for भूभुजा A.. Bh. 6. इत्युडभूमिः for रुद्रभूमिः A. 7. कोहे for केन्द्रे A. 8. श्वतुरत्यपि for ०श्चतुरशीत्यसि ms. स्युचतुरसी त्यपि Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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