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________________ ( १०४ ) पृष्ठपादे' च पुच्छे च कर्णे जाते शनैश्चरे । मृत्युमङ्गो रणे तस्य हस्तिमल्लसमो यदि ॥ ५७२ ॥ निषिद्धाङ्गे च कर्णादौ रणकाले शनिः स्थितः । तत्काले पबन्धेपि वर्जनीयो गजोत्तमः॥ ५७३ ॥ अगत्या मण्डनं मेरुः शर्वर्या भूषणं शशी । नराणां मण्डनं विद्या सैन्यानां मण्डनं द्विपः ॥ ५७४ ।। अश्वाकारं लिखेच्चक्रमश्विधिष्ण्यादितारकाः । वदनात्सृष्टिगाः स्थाप्या अष्टाविंशतिसंख्यकाः ।। ५७५ ॥ वक्त्राक्षिकर्णशीर्षेषु पुच्छांघो युग्मसंख्यकाः । पश्च पश्चोदरे पृष्ठे सौरियंत्र फलं ततः ।। ५७६ ।। वक्त्रायुदरशीर्षस्थो यदा सौरिहयोत्तमे। शक्रतुल्यस्तदा शत्रुर्भज्यते युधि शब्दतः ॥ ५७७ ।। और पृष्ठ, दोनों चरण, पुच्छ, दोनों कान इन स्थानों में शनि का नक्षत्र हो तो युद्ध में मल्ल समान भी हाथी हो तो भी मृत्यु और भंग होता हे ।।५७२।। यदि उस काल में निषिद्ध अंग या कर्णादि शनि में स्थित होतो उस काल में बड़े बड़े हाथियों को भी छोड़ देना चाहिये ॥५७३।। . जैसे पृथ्वी का भूषण मेरु पर्वत हे और रात्रि का भूषण चन्द्रमा है, और मनुष्य का भूषण विद्या है । उसी प्रकार सेनाओं का भूषण हाथी होता है॥५७४॥ घाड़े के आकार एक चक्र लिखें जिसमें घोड़े के नाम नक्षत्र मुख आदि क्रम से स्थापित करें ।।५७।। मुख, दोनों नेत्र. दोनों कान, मस्तक, पुच्छ, दोनों चरण, इन नौ स्थानों में आश्विन्यादिक दो दो नक्षत्र स्थापित करें, और पांच पांच नक्षत्र पृष्ठ, और उदर में स्थापित करें उस में जहां पर शनि हो वैसा फल कहें ॥५७६।। हय चक्र में जब शनि मुख, दोनों नेत्र, उदर, शोषे इन पांच स्थानों में हो तो युद्ध में इन्द्र तुल्य भी शत्रु शब्द से ही हट जाते है।।५७७॥ 1. पृष्ठे for पृष्ट A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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