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________________ (६) करमात्रे पतित्यक्ता धनैः करैः पतिर्नहि । सुरूपा सा भवेन्नारी सप्तगेहगतैहैः ।।४४०॥ घने भौमनवांशे मंदगदृष्टे सरोगयोनिः स्त्री । तत्रैव शुभनवांशे चारुश्रोणी प्रिया पत्युः ॥४४१॥ इति स्त्रीजातकम् । मघा रेवती मूलं च ज्येष्ठाश्लेषा तथाश्विनी । वर्जयेहतुकाले च षडेतानि हि नान्यभम् ॥४४२॥ योनिस्थाने स्थिते चन्द्रे शके तत्रैव संस्थिते । रतेः सुखं स्त्रियो वाच्यं नखसीत्कारपेशलम् ॥४४३॥ गुरौ लग्ने सिते धने चन्द्रे च सुखवेश्मनि । रूपलावण्ययुक्तानां रतं यूनां सुखास्पदम् ॥४४४॥ अस्ते शुक्रे युते करः सुखं पीडा च जायते । चन्द्रशुक्रौ यदा तत्र सुखाधिक्यं तदा मतम् ॥४४५।। सप्तमस्थान में यदि पापग्रह हों तो वह स्त्री पतित्यक्ता हो जाय । यदि उस स्थान में अधिक पापग्रह होवें तो पति मर जाय । यदि सात भावों में सब ग्रह स्थित हो जाय तो स्त्री सौभाग्यवती होती है ॥ ४४०॥ सप्तमस्थान में मंगल के नवांश में यदि शनि की दृष्टि रहे तो स्त्री योनिदोषवती होती है । उसी स्थान में यदि शुभग्रह का नवांशा हो जाय तो स्त्री सुन्दरी तथा पतिप्रिया होती है ॥ ४४१ ॥ ऋतुकाल में मघा रेवती, मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और अश्विनी इन ६ नक्षत्रों को अवश्य छोड़ना चाहिये, अन्य नक्षत्रों को नहीं ॥ ४४२ ॥ चन्द्र और शुक्र यदि योनिस्थान में रहें तो उस स्त्री को मैथुनजन्य सुख कहना चाहिये ॥ ४४३ ॥ लग्न में गुरु, सप्तम में शुक्र और चतुर्थस्थान में यदि चन्द्रमा रहे तो रूप लावण्ययुक्त युवकों को स्त्रीसुख कहना चाहिये ॥ ४४४ ॥ शुक्र यदि सप्तम स्थान में रहे तथा कर ग्रहों से युक्त हो तो मुख और दुख दोनों होते हैं। यदि चन्द्रमा और शुक्र एक साथ रहें तो अधिक मुख कहना चाहिये ॥४४५ ।। 1. सौभाग्यात्या शुभयुक्त for चाह...पत्यु : A, A1 2. स्थान for स्थाने A, AP
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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