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________________ (७६) भार्यास्थानं यदा तुंगमुदितं सौम्यसंयुतम् । तदा रकुलोत्थस्य भार्या भवति भूपजा ॥४०१॥ सप्तमे रिते' भावे चतुर्थे सौम्यसंयुते । धृता तस्य भवेद्भार्या परिणीता मृतैव हि ॥४०२॥ सप्तमे यदि राहुः स्यात् पृच्छायां जन्मलग्रतः। या यात्र परिणीता स्यात् सा सा पत्नी मृतव हि ॥४०३॥ सप्तमे तुर्यगे वापि क्ररे शुक्रबलोत्थिते । परिणीता धृता वापि जीवत्येव न वर्णिनी ॥४०४॥ सप्तमं तुर्यगं चापि तुंगं सौम्ययुतं भवेत् । परिणीता धृता वापि द्वे स्तो रुचिरकन्यके ॥४०५॥ जायागृहांकमानेन भार्यासंख्या विलोक्यते । जायागृहानुमानेन जायासंख्या सतां मता ॥४०६॥ मित्रक्षेत्रे ग्रहे सौम्ये स्वीया पत्नी सदैव हि । शत्रुक्षेत्रे ग्रहे सौम्ये परपत्नी सुखावहा ।।४०७॥ स्त्रीस्थान में उदित शुभग्रह यदि उच्च का हो तो दरिद्र कुल में विवाह होने पर भी वह स्त्री रानी के समान होती है ।। ४०१ ।।। __ सप्तमस्थान यदि पापग्रहों से युक्त हो और चौथे में शुभग्रह हों तो स्त्री की मृत्यु हो॥४०२ ॥ प्रश्न में जन्मलम से यदि सप्तम में राहु हो, जिस जिस स्त्री से विवाह वा सम्बन्ध हो वही मर जाय ॥ ४०३ ॥ सप्तम वा चतुर्थ स्थान में पापग्रह रहें और शुक्र से संबन्ध रखते हों तो विवाहित वा संबद्ध भी स्त्री मर जाती है ।। ४०४॥ सप्तम वा चतुर्थ स्थान उच्च का अथवा किसी शुभग्रह से युक्त हो तो विवाहित वा सम्बन्ध वाली स्त्री अच्छी ही होगी ।। ४०५॥ । सप्तमस्थान के प्रहों की संख्या के अनुमान से ही स्त्रीसंख्या देखी जाती है ॥ ४०६ । शुभमह याद मित्र के घर में रहें तो स्त्री अपनी सदा रहती है। शत्रु के घरमें यदि शुभमह रहें तो दूसरे की पत्नी सुखावह होती है । ४०७॥ 1. करितो for ऋरिते A1 2. यदि तुर्ये वा for तुर्यगे वापि A. 8. A read वापि for चापि ।
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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