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________________ लमेशो लग्नसंयुक्तो नरराशी रविभवेत् । तदा बुधैः पुमान् वाच्यो व्यत्यये व्यत्ययः पनः ॥३४८॥ जीविष्यति ममापत्यमिति प्रश्ने समागते । शुभेक्षितस्तु रिष्फेशः केन्द्रगतोऽथवा पुनः ॥३४९।। जीवत्येवं तदापत्यं ताजिके शास्त्रसंमते । चन्द्रे तत्र शुभर्युक्ते विशेषण च जीवति ॥३५०॥ दिनराश्युदये लग्ने लग्नस्वामी दिनग्रहः । यदि जातस्तदा वाच्यं दिवा जन्म विचक्षणैः ।।३५१।। दिनलभेपु लमं चेल्लमशो दिनराशिपु । दिवाजन्म तदा वाच्यं व्यत्यये व्यत्ययः पुनः ॥३५२॥ अस्मिन् वर्षे विजातं मे भविष्यति न वा पनः । लप्रेशः पञ्चमे स्थाने सुतेशो वाथ लागः ॥३५३।। लग्नेश लग्न में हो, सूर्य नर राशि में रहे तो पुरुष की उत्पत्ति कहनी चाहिये । इसके विपरीत कन्या की उत्पत्ति कहनी चाहिये ।। ३४८ ॥ यह मेरी सन्तान जीवित रहेगी वा नहीं, ऐसे प्रश्न में रिष्फेश यदि शुभ ग्रह से देखा जाय वा केन्द्रस्थ होवे तो सन्तान अवश्य ही चिरजीवित रहेगी ।। ३४६ ॥ केन्द्र में चन्द्रमा यदि शुभप्रहों से युक्त हो तो सन्तान चिरजीवित रहेगी यह ताजिक शास्त्र के अनुमार कहा है ।। ३५० ॥ दिनराशि यदि लग्न हो, लग्न के स्वामी यदि दिन ग्रह रहें तो दिन में सन्तान की उत्पत्ति कहनी चाहिये ॥ ३५१ ॥ लग्न यदि दिन लग्नों में से हो, लग्नेश यदि दिन राशि में रहे तो दिन में ही जन्म कहना चाहिये । इसके विपरीत में कन्या होती है ।।३५२। इस वर्ष में मुझे पुत्र होगा वा नहीं, ऐसे प्रश्न में लग्नेश यदि पशम स्थान में वा पश्चमेश लग्न स्थान में रहें तो ।। ३५३ ॥ 1. पुमान् tor पुन: Amb 2. भवेत् for पुनः .. लग्न for लग्ने A. 4. भवेत for पुन: Ambb. कापि for cाथ A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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