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________________ 2 (६३) तिक्तं रवौ विधौ क्षारं कटु भौमे मतं दिशि । बुधे कषायसंयुक्तं गुरौ तु मधुरोज्ज्वलम् || ३२६ || मितेऽम्लं' व्यञ्जनं वाच्यं शनौ राहौ च दग्धकः । शुक्रस्य बालवृद्धौ च घृताधिक्यं तदा मतम् || ३२७॥ क्रियते केवलादर्शो मुक्तिसिद्धिप्रकाशकृत् । श्रीमदेवेन्द्र शिष्येण श्रीहेमप्रभसूरिणा || ३२८ ॥ इति चतुर्थभावे भोजन प्रकरणम् । 3 अथ ग्रामपृच्छा" ग्रामपृच्छासु सर्वेषु कंटकेषु शुभा ग्रहाः । तत्र पुर्यो महावप्रः चतुर्दिक्ष भवेद्दृढः || ३२९ || केन्द्रेषु यदि सर्वेष्वप्युच्चा दृष्टाः शुभा ग्रहाः । तत्र पुर्यां महावप्रः सर्वोच्चैर्निवितं मतः ॥ ३३० ॥ चतुर्थ स्थान में रहें तो भोजन तिक्त, चन्द्रम चतुर्थ स्थान में. हो तो नमकीन, मंगल रहे तो कडुवा बुध रहे तो कषाय रस वाला, गुरु रहे तो मधुर और उज्ज्वल रहता है ।। ३२६ ।। शुक्र चतुर्थ स्थान में रहे तो अम्ल रस वाला शाक कहना चाहिये । शनि और राहु रहें तो जला हुआ, शुक्र की बाल्यावस्था तथा वृद्धावस्था रहने पर व्यञ्जन घृतपूर्ण होता है ।। ३२७ ॥ श्रीदेवेन्द्रसूरि के शिष्य श्रीहेमप्रभसूरि ने भोगसिद्धि के प्रकाशक एकमात्र आदर्शरूप इस प्रन्थ की रचना की ।। ३२८ ॥ ग्राम के संबंध में पूछने पर यदि प्रश्नकाल सभी में शुभ ग्रह केन्द्र स्थानों में रहें तो उस नगरी के चारों ओर पहाड़ी प्रदेश कहना चाहिये । ३२६ || यदि केन्द्रस्थान में उच के शुभ ग्रह रहें तो उस नगरी में एक विशाल उच्च वत्र कहना चाहिये || ३३० ॥ 1. सं for o A1. 2. दुग्धकम for दग्धक: A 3. The portion अथ प्रामपृच्छा is found only in A1 4 तत्र धामे स्फुटं वप्रः for सत्र पुर्या महावप्रः A1 5. वो ति० for 0 चैनिंοA.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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