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________________ (४) पृछायां तुर्यगे चन्द्रे भोजनं लवणाधिकम् । व्यञ्जनैर्वेषवाराचैलवणेन धनेन वा ॥३०॥ तूर्ये भौमे भवेद्भोज्यं मुहुः कटु रसाश्रयम् । दशमे मङ्गले मांसं रक्तस्रावेण संयुतम् ॥३०५।। रखी तूर्ये निष्प्रतापं सरसं तत्र शीतगौ । सकलहं ससंतापं भौमे तुर्येऽशनं स्मृतम् ॥३०६॥ बुधे भोज्यं कषायं तु गुरौ तु मधुरोज्ज्वलम् । सिताखण्डघृताव्यं तु भक्तं सूपहविर्युतम् ॥३०७॥ बुधे तत्र बुधानां च कथालापकपेशलम् । शनी राहौ च तुयस्थ सशोकं सभयं पुनः ॥३०८॥ प्रश्नकाल में यदि चतुर्थ स्थान में चन्द्र रहे तो भोजन में अधिक नमक होगा और साग आदि अन्य पदार्थ भा अधिक नमक से विकृत होंगे॥३०४॥ चतुर्थ स्थान में याद मंगल रहे तो भोजन कड़वे रस से युक्त हो। शम स्थान में यदि मंगल रहे तो रक्त से पूर्ण मांसभोजन को प्राति हो ।। ३०५ ॥ सर्य चतुर्थ स्थान में रहे तो भोजन नीरस, चन्द्र रहे तो सरस मिले । मंगल चतुर्थ स्थान में रहे तो कलह तथा सन्ताप आदि से भोजन को प्राप्ति हो ।। ३०६ ॥ बुध चतुर्थ स्थान में रहे तो भोजन कषायरसपूर्ण, गुरु चतुर्व स्थान में रहे तो मधुर तथा शकर घृत आदि से युक्त दाल भात मिलना चाहिये ॥ ३०७॥ बुध चतुर्थ स्थान में हो तो पण्डितों के सहचनामृतों के साथ भोजन मिलना चाहिये । शनि और राहु यदि चतुर्थ स्थान में रहें तो शोक और भय के साथ भोजन प्राप्त हो ॥ ३०८॥ ____ 1. वराल्यै for वाराहा A. 2. ज्यमुष्णं for ज्यं मुहुः A. 3. श्रावेण for खावेण A. 4 मितः खंडघुलाठ्यं for सिताखण्डपाय A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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