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________________ निधिस्थानपतिः स्थाने यावत्संख्येऽवतिष्ठति । तावद् हस्तेष्वधोवाच्यं निधानं भूमिखण्डके ॥२८॥ यावत्संख्येऽशके चन्द्रे लग्नेशो यत्तमो भवेत् । तत्संख्याकरमानेन द्रव्यं भूमिगतं वदेत् ॥२८॥ शुक्रे चन्द्रे भवेद्रौप्यं बुधे स्वर्ण निधिस्थितम् । गुरौ रत्नयुतं 'हेममादित्ये मौक्तिकं तथा ॥२८३॥ भौमे पु शनी लोहं राहावस्थि भुवि स्थितम् । धातोविनिश्चये ज्ञाते विशेषोऽयं ग्रहस्थितः ॥२८४॥ चतुर्थाधिपती मध्ये गृहमध्ये भवेद् ध्रुवम् । चतुर्थाधिपतौ बाह्य गृहाबहिर्गतं धनम् ॥२८५॥ विलमात्सप्तमं यावद्राशयोऽभ्यन्तराः खलु । सप्तमात्प्रथमं यावद् बाह्या हि राशयो मताः ॥२८६॥ निधि स्थान के स्वामी उस से यत्संख्यक स्थान में रहें उतने हाथ नीचे भूमिखएड में निधि कहनी चाहिये ॥२८१। चन्द्रमा यत्संख्यक नवांशक म रहे और लग्नेश लग्न से जितने स्थान पर हो उतने हाथ पर भूमि के अन्दर द्रव्य कहना चाहिये ॥२२॥ इस प्रकार शुक्र और चन्द्र यदि हों तो रुपये, बुध हों तो सुवर्ण, शुक्र गुरु हों तो रत्न युक्त सुवर्ण और सूर्य के रहने से मोती मिलते हैं ॥२८॥ मंगल में मूंगा, शनि में लोहा और राहु में पृथ्वीगत हड्डी मिलती हैं। इस प्रकार धातु के निश्चय हो जाने पर ग्रहों से विशेष बातें जाननी ॥२८४॥ चतुथ स्थान का स्वामी यदि मध्यस्थान में हो तो घर के अन्दर निधि मिले । यदि चतुर्थेश बाह्यस्थान में रहे तो घर के बाहर निधि मिलती है ॥२८॥ 1. निधानं भू० for द्रव्यं भूमि A1. 2. भवेत् for वदेत् A. A1 3. स्वर्णमुदाहृतम् for स्वर्ण निधिस्थितम् A. Bh. 4 सूर्य for हेम० A.I A 5. मौक्तिकमुच्यते for मौक्तिकं तथा A.A1 मौक्तिकं निधौ Bh. 6. वस्थीति कीतयेत् for वस्थि भुवि स्थितम् A. A1:7. ग्रहोत्थित: for प्रहस्थितः A1 8. गृहे मध्ये for गृहमध्ये A. 9. धनं for र्गतं A. 10. मत: for खलु A.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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