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________________ ऋषभायण में रूपक तत्व डॉ. नगेन्द्र ने रूपक की विस्तृत व्याख्या करते हुए लिखा है कि रूपक के हमारे साहित्य शास्त्र में दो अर्थ हैं । एक तो साधारणतः समस्त दृश्य काव्य को रूपक कहते हैं, दूसरे 'रूपक' एक साम्यमूलक अंलकार का नाम है, जिसमें अप्रस्तुत का प्रस्तुत पर अभेद आरोप रहता है। इन दोनों से भिन्न रूपक का तीसरा अर्थ भी है, जो अपेक्षाकृत अधुनातन अर्थ है और इस नवीन अर्थ में 'रूपक' अंग्रेजी के एलिगरी का पर्याय है । 'एलिगरी एक प्रकार के कथारूपक को कहते हैं। इस प्रकार की रचना में प्रायः एक द्विअर्थक कथा होती है जिसका एक अर्थ प्रत्यक्ष और दूसरा गूढ़ होता है ।.... कथा रूपक में एक कथा का दूसरी पर अभेद आरोप होता है। वहां भी एक कथा प्रस्तुत और दूसरी अप्रस्तुत रहती है । प्रस्तुत कथा स्थूल भौतिक घटनामयी होती है । और अप्रस्तुत कथा सूक्ष्म सैद्धांतिक होती है । यह सैद्धांतिक कथा दार्शनिक, नैतिक, राजनीतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक आदि किसी प्रकार की हो सकती है । परन्तु इसका अस्तित्व मूर्त नहीं होता। वह प्रायः प्रस्तुत कथा का अन्य अर्थ ही होता है, जो उससे ध्वनित होता है, किसी प्रबंध काव्य की प्रासंगिक कथा की भाँति जुड़ा हुआ नहीं होता । (30) 'ऋषभायण' महाकाव्य की मूल कथा यौगलिक जीवन का अकर्म युग से कर्मयुग में प्रवेश की कथा है, जिसके केन्द्र में हैं अतीन्द्रिय ज्ञान के स्वामी ‘ऋषभदेव'। समाज, शिक्षा, शिल्प, राजनीति, दर्शन, विज्ञान आदि का निस्पृह रूप से विकास एवं स्वस्थ सामाजिक जीवन की रूपरेखा उनकी देन है। इस प्रकार 'ऋषभ' का विराट व्यक्तित्व 'पुरुषार्थ' का प्रतीक है, जिससे 'समता' की स्थापना होती है। इस 'समता' दृष्टि के कारण वे निष्काम भाव से राजा के रूप में अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करते हुए अर्थ, धर्म, काम की संपूर्णता को प्राप्त कर आत्मसाधना के द्वारा 'मोक्ष' का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जैन धर्म के अनुसार जगत के दो रूप हैं एक है पदार्थ जगत् और दूसरा है आत्मा का जगत् । पदार्थ जगत् से आशय संसार की उन संपूर्ण वस्तुओं से है जिसका संबंध किसी न किसी रूप में मानव से है। विषमता है, वहाँ भोग है, वहाँ कलह हैं, वहां आपत्ति है । जहां पदार्थ है वहां यानि पदार्थ समस्या TRAI
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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