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________________ अध्याय-सप्तम् उपसंहार काव्य और बिम्ब का घनिष्ट सम्बन्ध होता है। कवि की अनुभूतियाँ कल्पना के माध्यम से बहुधा बिम्ब के रूप में ही व्यक्त होती है। इस तरह कवि की भावनाएँ और उसके विचारों के सम्प्रेषण में बिम्ब की प्रमुख भूमिका होती है। अनुभूति, भावना, वासना और ऐन्द्रियता बिम्ब के प्रमुख तत्व हैं। कल्पना उसका क्रियमाण तत्व है। कवि की कल्पना ही बिम्ब को गढ़ती है। बिम्ब सृष्टि में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि अलंकारों का भी सहयोग रहता हैं, किन्तु अलंकार बिम्ब का अनिवार्य उपादान नहीं है। बिम्ब अलंकार का मुखापेक्षी नहीं रहता। अलंकार के बिना भी बिम्ब निर्मित होते हैं। एक सीधा-सादा अनलंकृत कथन भी ऐन्द्रियता और गहन संवेग से संपृक्त होकर प्रभावशाली बिम्ब का स्वरूप प्राप्त कर सकता है। प्रतीक और बिम्ब का भी बड़ा निकट का सम्बन्ध होता है। प्रतीक यद्यपि बिम्ब से ही उपजते हैं, फिर भी दोनों में पर्याप्त स्वरूपगत अन्तर होता है। प्रतीक और बिम्ब परस्पर मिलकर प्रतीकात्मक बिम्ब की सृष्टि करते हैं। प्रतीकात्मक बिम्ब अपनी एन्द्रियता के बावजूद किसी अमूर्त भाव सत्ता का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। इस तरह प्रतीकात्मक बिम्बों में शिल्प, संवेदना और भावना का गहन अन्तर्योग समाहित रहता है। बिम्ब काव्य का ऐसा उपकरण है जिसके माध्यम से कवि के अनुभव की विशालता, अनुभूति की गहनता, कल्पना की विराटता, भावों की गम्भीरता, विचारों की यथार्थता ओर उसके काव्य विवेक को बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। कवि में कितनी पर्यवेक्षण शक्ति है, इसकी जानकारी भी हमें उसके काव्य बिम्बों से होती है। पाश्चात्य समीक्षा शास्त्र में बिम्ब को काव्य का अनिवार्य तत्व एवं उसकी संजीवनी शक्ति माना गया है। किन्तु भारतीय काव्य शास्त्र में रस को काव्य की आत्मा के रूप में स्वीकार किया गया है। रस का सम्बन्ध भाव से है और भाव का [337]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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