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________________ गिरिजनों से युद्ध के पश्चात् भरत की सेना से संधि हुई। संधि के पश्चात् वे गिरिजन जो कल तक भरत के शत्रु थे आज वे भरत के नयनों के तारे बने हुए हैं - आनन्द-उर्मि उत्फुल्ल वदन हैं सारे । कल के अरि इस क्षण में नयनों के तारे। ऋ.पृ. 181 गौरवान्ति होने के अर्थ में 'मस्तक ऊँचा होना' मुहावरा प्रयुक्त हुआ है। किंतु यदि अहं की संतुष्टि के लिए भाई-भाई में युद्ध हो तो क्या भविष्य में आने वाली पीढ़ियाँ अपने पूर्वजों की पारिवारिक युद्ध गाथा पर 'अपना मस्तक ऊँचा' कर सकती हैं ? भरत के आक्रामक आचरण से खिन्न शरण में आए अट्ठनबें पुत्रों को संबोधित करते हुए ऋषभ कहते हैं - भाई-भाई में संगर की, गाएगा हर युग गाथा। सोचो कैसे भावी पीढ़ी, का होगा ऊँचा माथा ? ऋ.पृ. 201 उदास भाव की अभिव्यक्ति के लिए 'मन खिन्न होना' मुहावरे का बिम्ब निरूपित किया गया है। भरत के सम्बन्ध में बहली राज्य के नागरिकों द्वारा कटुक प्रवाद सुनकर दूत सुवेग का 'मन खिन्नता' से भर जाता है - 'लोभ बढ़ता लाभ से' यह, सूत्र शाश्वत सत्य है। भरत का अभियान होगा फल-रहित यह तथ्य है। कटुक लोक प्रवाद सुनकर, दूत का मन खिन्न है। ऋ.पृ. 229 'मुकाबला करने के अर्थ में 'लोहा लेना' मुहावरे का बिम्ब प्रयुक्त किया गया है। चक्र की सामर्थ्य का वर्णन करते हुए सेनापति सुषेण-भरत से कहता है कि चक्र से रक्षित सेना की शक्ति का सामना कोई नहीं कर सकता। यह चक्र तो देवराज इन्द्र से भी लोहा लेने में समर्थ है - चक्री सेना का ताप कौन सह सकता ? यह चक्र शक्र से भी लोहा ले सकता । ऋ.पृ. 247 'भृकुटि का तनना' तथा 'आँखों में खून उतरना' मुहावरा परक बिम्ब | 317]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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