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________________ लगता है। आत्मानन्द की उपलब्धि योग की चरम अवस्था है। आज की इस भौतिकवादी दुनियाँ में भोगवाद से पनपी व्यक्ति की लालसा, लिप्सा का शमन मात्र योग से ही संभव है। चेतना की विमलता ने कमलदल को छू लिया। आत्म वर्चस वेदिका पर जल उठा अविचल दिया। ऋ.पृ.-102 सातवें सर्ग में 'अक्षय तृतीया' के महत्व का निष्पादन किया गया है। इसमें ऋषभ की कठोर साधना एवं उनके शिष्यों की साधना से 'विचलन' का वर्णन किया गया है। इन्द्रियातीत मन भूख-प्यास, इंद्रिय सजगता से परे अन्तरात्मा का द्वार खोलता है। मन को साधने अथवा नियंत्रित करने की साधना योग से ही संभव है। योग में भूख-प्यास, नींद के लिए कोई स्थान नहीं, वह तो जागरण की अद्भुत प्रक्रिया है। उदरजीवि व्यक्ति के लिए साधना का पंथ अगम होता है, रोटी के प्रति आस्था, छद्म साधकों अथवा पाखंडियों का उत्स है, क्योंकि व्यथा भूख की वचन अगोचर, कर देती है श्रद्धा का खण्ड रोटी से अभिभव आस्था का होता, तब चलता पाखंड। ऋ.पृ.-113. वर्तमान परिवेश में उक्त कथन प्रासंगिक है। कच्छ, महाकच्छ सहित शेष मुनियों का योग मार्ग से विचलन ऐन्द्रिय प्रबलता के कारण ही होता है। आत्म साक्षात्कार भौतिक जगत के त्याग एवं आंतरिक जगत के परिष्कार से ही सम्भव है। आत्म साक्षात्कार के पश्चात प्रिय अप्रिय का भेद तिरोहित हो जाता है : चाह नहीं है, राह वहीं है, सत्य कहीं अस्पष्ट नहीं। शुद्ध चेतना के अनुभव में, प्रिय अप्रिय का कष्ट नहीं। ऋ.पृ.-115. शरीर बाह्य रूप का प्रदर्शन है, तो आत्मा आन्तरिक रूप का। आत्म सत्ता के प्रकाशन के लिए शरीर सत्ता भी आवश्यक है, शरीर मार्ग है, आत्मा मंजिल। जीवनाधार के लिए शरीर आवश्यक है। शरीर की उपेक्षा अथवा शरीर | 14 ।
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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