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________________ बाहबली से कहती हैं - सिद्धिमार्ग में अहंकार बाधक है। इस संसार रूपी सागर का संतरण सहिष्णुता रूपी नौका के सहारे आसानी से किया जा सकता है - इस अहंभाव ने भाई ! पथ रोका है इस भवसागर में मार्दव ही नौका है। ऋ.पृ. 294 शुक्ल पक्ष में क्रम-क्रम से अपनी कलाओं में विकास करने वाले 'चन्द्र' के मूर्तमान दृश्य से अनासक्ति की श्रेष्ठ साधना का बिम्ब नियोजित है। 'अनासक्ति' अमूर्त भाव के लिए 'जलज' का भी श्रेष्ठ उदाहरण दिया गया है - अनासक्ति की प्रवर साधना, बढ़े शुक्ल का जैसे चंद्र जल से ऊपर जलज निरंतर, रवि रहता नभ में निस्तंद्र। ऋ.पृ.298 मुनिमार्ग पर ऋषभ के साथ प्रस्थान किये शिष्यों की अमूर्त भावनाओं का मूर्त स्वरूप भी प्रस्तुत किया गया है, जिसमें शिष्यों के हृदय में ऋषभ के प्रति आदर तो है, किन्तु भूख की पीड़ा से उनका मन आहत भी है। यहाँ सुख, श्रद्धा और मन अमूर्त है, जिसे क्रमशः सरिता, जलधर और उडुपथ (आकाश) से चित्रित किया गया है - सुख सरिता के तीर पर, सकल शिष्य समुदाय ऋ.पृ. 108 एक ओर श्रद्धा के जलधर, से मन का उडुपथ आकीर्ण पक्ष दूसरा भूख वेदना से, आहत मन, अंग विदीर्ण। ऋ.पृ. 113 ऋषभ का जब हस्तिनापुर में पदार्पण होता है, तब जनमानस में भावों का निर्मल झरना प्रवाहित होने लगता है, यहाँ जन मन की भावों की अमूर्त दशा का उद्घाटन विमल निर्झर से किया गया है - भावना का विमल निर्झर, जन-मनस में बह चला, कल्पतरू मनहर अकल्पित, आज प्रांगण में फला। ऋ.पृ. 127 --00-- 28911
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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