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________________ हर्ष इष्ट पदार्थ की प्राप्ति से उत्पन्न चित्त की प्रसन्नता को हर्ष कहते हैं । (4) प्रथम कुलकर के पद पर अधिष्ठित होने के पश्चात् संपूर्ण वातावरण वैसे ही प्रफुल्लित हो उठा जैसे बाल रवि के अभ्युदय से प्रातःकालीन बेला उसकी स्वर्णिम किरणों से मण्डित हो जाती है 5. - पूरा वातावरण प्रफुल्लित, नव सूर्योदय स्वर्ण विहान । सरजा जैसे नियति-चक्र ने, नई सृष्टि का नया विधान ।। ऋ. पू. 20 समुद्र में उठती हुई 'लहर' के बिम्ब से पुत्रावतार के पूर्व मां मरूदेवा द्वारा देखे गए स्वप्न से उनके हर्षभाव को व्यक्त किया गया है। जिस प्रकार मौन समुद्र से अकस्मात् गगनचुम्बिनी लहरें उत्थित होने लगती हैं वैसे ही अकारण मरूदेवा के हृदय में हर्ष की लहरें उठने लगी पता नहीं क्यों आज अहेतुक, हर्ष-वीचि उत्ताल हुई ? मौन समन्दर, गगनचुंबिनी, लहरी ज्यों वाचाल हुई ? ऋ. पू. 34 सुनन्दा, सुमंगला सह ऋषभ के पाणिग्रहण संस्कार के आनन्द भाव को सावन की रिमझिम वर्षा के बिम्ब से चित्रित किया गया है -- सम्पन्न पाणि से ग्रहण पाणि का पावन । जैसे बरसा हो रिमझिम- रिमझिम सावन ।। ऋ. पृ. 51 भरत के आनन्द भाव की अभिव्यक्ति भी 'लहर' के बिम्ब से की गयी है । बारह वर्षो तक अनवरत युद्ध की यंत्रणा सहने के पश्चात् नमि विनमि के संधि प्रस्ताव से भरत का मुखमंडल आनन्दमयी लहरों से प्रफुल्लित हो उठा - आनन्द - उर्मि उत्फुल्ल वदन हैं सारे । कल के अरि इस क्षण में नयनों के तारे ।। ऋ. पृ. 181 तक्षशिला में पधारे पिता ऋषभदेव का दर्शन न कर पाने के कारण बाहुबली व्यग्र हैं। उनकी व्यग्रता को तप्त दूध के उफान से बिम्बित किया गया है किन्तु सचिव के कोमल वचन रूपी जल कण के प्रभाव से उनकी व्यग्रता समाप्त हो 270
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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