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________________ निम्नलिखित पंक्तियाँ भ्राताद्वय की मूक ईच्छा का साक्षी है - चाहता है भरत कहना, किन्तु जलधि अथाह है। और बाहुबली न कोई, खोज पाया राह है।। ऋ.पृ. 104 अट्ठानबे पुत्र पिता ऋषभ से अपने-अपने राज्यों में आकर स्वयं की खोज-खबर लेने की इच्छा व्यक्त करते हैं। उनकी यह ईच्छा 'जलद' और 'कृषक' के बिम्ब से व्यक्त हुई है। जिस प्रकार घनघटा को देख कृषक कृषिकर्म के निर्वाह की इच्छा से हर्षित हो जाता है, वैसे ही अपने-अपने राज्यों में पिता के आगमन से पत्रगण भी हर्षित होना चाहते हैं - देव! हमारे राज्यों में भी, करना पावन चरणस्पर्श। घटा जलद की देख कृषक के, मन में होगा अतिशय हर्ष । ऋ.पृ. 106 आयुध शाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति से उल्लसित भरत की तीव्र ईच्छाओं के पंख लग जाते हैं। उनकी इस ईच्छा का प्रदर्शन खग-शावक के उगे हुए उन नवीन पंखों के बिम्ब से किया गया है जो उसे उड़ने के लिए आतुर करते रहते हैं - पुलकित तन मन के अणु-अणु में, गौरवमय उल्लास जगा। उड़ने को आतुर खग-शावक, नया-नया ज्यों पंख उगा।। ऋ.पृ. 151 ईच्छा का वृहद् रूप महत्वाकांक्षा है। यह महत्वाकांक्षा सद् भी होती है, असद् भी होती है। मानव में जब असद् महत्वाकांक्षा का सूत्रपात होता है तब वह 'शोषण जैसी हिंसात्मक गतिविधियों को अपनाता है। शक्तिसम्पन्न लोकमानस के परिप्रेक्ष्य में आचार्य प्रवर ने 'अमरबेल' के बिम्ब से प्रबल महत्वाकांक्षी शोषक की दुर्वृत्ति को प्रस्तुत किया है मनुज महत्वाकांक्षी पर पर, निज अधिकार जमाता | अमरबेल-सा शोषक पर की, सत्ता पर इठलाता।। ऋ.पृ. 162 ईच्छाएं अनन्त होती हैं। एक स्पृहा होने के पश्चात् दूसरी स्पृहा स्वयं उत्पन्न हो जाती है। यह सहजात् वृत्ति है। मानव की अनन्त ईच्छा को उस प्यासे RAAT
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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