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________________ संचारी अथवा व्यभिचारी भावों के अनुक्रम में निम्नलिखित संचारियों के बिम्ब मिलते हैं - 1. मोह 2. स्पृहा 6. शंका 7. ईर्ष्या चिंता, स्वप्न ) 1. 3. हर्ष 8. मद 4. प्रमाद 5. कृत्यकृत्यता (धन्यता) 9. श्रम एवं 10. अन्यभाव ( लोभ, जड़ता, उत्सुकता, स्थायी भावों से संबंधित बिम्ब भक्ति महनीय आत्मा के प्रति आस्था, विश्वास, समर्पण एवं पूजाभाव भक्ति है । ऋषभ मानव रूप में एक ऐसे महामानव हैं, जिनका अवतरण मात्र जीवन के रहस्यों को उद्घाटित करने के लिए ही नहीं अपितु मानव समाज के अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की उपलब्धियों से मण्डित कराने के लिए हुआ हैं। उन्होंने नगर राज्य-व्यवस्था को प्रारम्भिक स्तर पर ही सुदृढ़ कर समानता के धरातल पर लोककल्याणकारी राज्य की नींव रखी। असि, मसि, कृषि, लिपि आदि के विकास से उन्होंने राज्य को वह स्वरूप प्रदान किया जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड में एकमात्र उदाहरण है 'न भूतो न भविष्यतो' यह ऋषभ चरित्र का लोकपक्ष है, जिसका मार्गान्तरण ही आध्यात्मिक पक्ष है। वे निर्लिप्त भाव से लोकजीवन को समृद्ध एवं स्वयं को ममता मोह के बंधनों से मुक्त कर आत्मदर्शन का मार्ग प्रशस्त करते हुए जनजीवन को मोक्ष का संदेश देते हैं। इस प्रकार वे लौकिक और अलौकिक जगत के पुरस्कर्ता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ऋषभ का संपूर्ण जीवन कर्म और साधना का अद्भुत संगम है इसलिए वे मानव और देव दोनों के लिए पूजनीय हैं । इन्द्र, नागराज धरण, कुबेर तथा कई लोकों के अधिपति भक्ति भाव से उनकी वंदना करते हैं । ऋषभायण में ऋषभ के प्रति भक्ति भावना से सम्बधित अनेक बिम्ब निर्मित हुए हैं। प्रेम और समर्पण भक्ति का अलंकरण है। ऋषभ के श्री चरणों में भरत के समर्पण भाव का चित्रण 'सूर्य' और 'चंद्रमा' के प्रति अनुरक्त क्रमशः 'चातक' और 'चकोर' के बिम्ब से किया गया है 236 —
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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