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________________ ... माया, मोह, ममता के बंधन के लिए भी कोमल धागे का बिम्ब प्रस्तुत .. • किया गया है। ममता का त्याग किए बिना कोई भी व्यक्ति साधना के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता। ऋषभ चिंतन करते है - ममता के कोमल धागों से, बनता मनुज समाज ममता की अति ही करती है, मानव मन पर राज तोडूं ममता का तटबंध, जिससे बनता सनयन अंध। ऋ.पृ. 82 उक्त बिम्बों के अतिरिक्त भी अन्य एकल बिम्बों की रचना हुयी है। जैसे - इन्द्रियों के वशीभूत स्वेच्छाचारी शासक के लिए 'अंकहीन शून्य'(१) का बिम्ब, सचिवों द्वारा सुसंचालित मंगलकारी राज्यव्यवस्था के लिए 'श्रीयंत्र ७) का बिम्ब, जड़वत चेतना के लिए मूर्ति का बिम्ब, ऋषभ के अदर्शन से व्याकुल बाहुबली की चिंता के लिए 'वातूल (G) का बिम्ब, गिरिजनों की सहायता में तत्पर मेघमुख की हठधर्मिता के लिए 'चीवर (१) का बिम्ब, हिमालय की दोनों श्रेणियों के लिए 'वनिता के वेणी बंधन) का बिम्ब, कृषि कार्य में व्यस्त कृषकों के लिए 'सिद्ध योगी (७) का बिम्ब तथा विद्या विकास के लिए 'कामधेनु (१०) का बिम्ब। इस प्रकार ऋषभायण महाकाव्य में एकल बिम्बों का विस्तार देखा जा सकता है। --00-- 216]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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