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________________ रस या आस्वाद्य बिम्ब रसनेन्द्रिय का संबंध स्वाद से है पूर्वानुभूति मधुर तिक्त, कटु, कषैला और लवणीय आदि रसना के अनुभवों का काव्य में बिम्बात्मक ऐन्द्रियानुभव कराना स्वाद बिम्बों का कार्य है । प्रायः कवियों ने ध्वनि, प्रेम, रूप आदि की प्रभावाभिव्यक्ति आस्वाद्य बिम्बों से की है। आचार्य महाप्रज्ञ ने आस्वाद्य बिम्ब निर्माण में अमृत का सर्वाधिक आश्रय लिया है । अमृत एक कल्पित पदार्थ है जिसका स्वाद अत्यन्त मीठा माना जाता है। शांत वातावरण की मनोमयता का दृश्यांकन सुधापान से किया गया है । युगलों का प्राकृतिक जीवन कलह विहीन था । चारों और शांति ही शांति थी। ऐसे परिवेश में युगल शांत-सुधा का पान कर कलह की व्याकुलता से मुक्त 4. बात सही है, सोच सही है, हम स्वतंत्र जीने वाले । किन्तु कलह से व्याकुल, प्रतिपल, शांत सुधा पीने वाले । ऋ. पृ. 19 संयममय जीवन के लिए अमृत का स्वाद परक बिम्ब देखने योग्य है । ऋषभ सामान्यजन को संयम का उपदेश देते हुए कहते हैं कि अतिभोग आत्मिक उत्थान में बाधक है। वह विकृति का कारण है। संयम सुधा के आचमन से ही धर्माचरण सुलभ होता है — भोग की सीमा करे यह धर्म है संयम-सुधा । सत्य को जाने बिना ही, उलझता मानव मुधा । - ऋ. पृ. 96 अंगुष्ठपान के द्वारा भी अमृत की स्वादानुभूति करायी गयी है । स्वभावतः नवजात शिशु अपना अंगुष्ठ पान करता है। यह अंगुष्ठ पान बालक के लिए स्वास्थ्य वर्धक व हितकारी है । बालक ऋषभ भी अंगुष्ठपान में अमृत का आस्वादन कर रहे हैं - मिला अमृत अंगुष्ठ-पान में, अति पोषक आहार बना । फलाहार, फिर स्वास्थ्य विधायक, मूल पुष्ट तो पुष्ट तना । ऋ. पृ. 37 मीठे जल से सद्भाव की स्वादानुभूति भी अमृत के समान नारिकेल के कराई गयी है। परोपकार सद्भावना का विशिष्ट गुण है। परोपकारी बाह्यरूप से 195
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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