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________________ 'नीर' से बना रहता है। इस प्रकार 'तीर' से 'नीर' की प्रतिबद्धता के बिम्ब से शरीर . और आत्मा की एकसूत्रता को व्यक्त किया गया है, जिसे निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है : पृथ्वी, सलिल, कृशानु, समीरण, तरूगण, सब हैं जीव शरीर, . पुद्गल वेष्टित जीव सकल हैं, बद्ध तीर से जैसे नीर। ऋ.पृ.-5. लोक और सष्टि में 'चेतन' और 'अचेतन' ये दो गतिविधियाँ सक्रिय हैं। चेतन, भोक्ता है, जीवन का कारण है, 'अचेतन भोग्य है जिस पर जीवन टिका हुआ है। एक प्रकार से संपूर्ण सृष्टि भोक्ता और भोग्य का सम्मिश्रण है। सृष्टि में व्याप्त चेतन और अचेतन के इस सूक्ष्म एवं स्थूल रूप को विविध खेलों के माध्यम से अपनी कला-कौशल का रोमांचक प्रदर्शन करने वाले 'नट' के 'बिम्ब' से प्रस्तुत किया गया है। 'चेतन' और 'अचेतन' की वैविध्यता जटिल है 'नट' का कौतुक भी जटिल है, किन्तु बोधमयता की दृष्टि से सहज है। संपूर्ण प्रकृति दशा के उद्घाटन के लिए कलाव्यापार में निपुण 'नट' का बिम्ब सार्थक और प्रशंसनीय है :-- ऋ.पृ.-04 चेतन और अचेतन दो हैं - मूल तत्व ये नित्यानित्य + + + रंगभूमि में ये दोनों नट, खेल रहे हैं नाना खेल। इनके पर्यायों से ही है, हरी भरी जीवन की बेल। ऋ.पृ.-05. यहाँ गौर करने की यह भी बात है कि जब तक 'नट' अपना कौतुक दिखलाता रहता है, तब तक दर्शक की दृष्टि उससे बँधी होती है, अलग नहीं हो पाती। संसार में भी लोग इस सृष्टि की लोकमाया में बंधे रहते हैं, उससे उबर नहीं पाते। इस प्रकार संसार में जीवन का विकास होता रहता है, जीवन के इस विकास |173
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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