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________________ नामवरसिंह ने लिखा कि - 'इसे विरोधाभास ही कहना चाहिए कि जब से कवियों में बिम्बों की प्रवृत्ति बढ़ी, सामाजिक जीवन के सजीव चित्र दुर्लभ हो चले। सुंदर चयन की ओर कवियों की ऐसी वृत्ति हुयी कि प्रस्तुत गौण हो गया और अप्रस्तुत प्रधान/...... कविता को चित्र बनाने का नतीजा क्या है यह बात पिछले 15 वर्षो के अनुभव से स्पष्ट हो गयी। 165) एक समय ऐसा भी आया कि बिम्बों का अन्धाधुन्ध प्रयोग होने के कारण तथा बिम्ब को ही कविता का मूल मानने के कारण सन् 60 के बाद भारी विरोध होने लगा। इस संदर्भ में डॉ. नामवर सिंह ने लिखा- 'छठवें दशक के अंत और सातवें दशक के आरंभ में सामाजिक स्थिति इतनी विषम हो चुकी थी कि उसकी चुनौती के सामने बिम्ब-विधान कविता के लिए अनावश्यक भार प्रतीत होने लगे। जिस प्रकार सन् 36 तक आते-आते स्वयं छायावादी कवियों को भी सुंदर शब्दों और 'चित्रों' से लदी हुई कविता निस्सार लगने लगी, उसी प्रकार सन् 60 के आसपास नई कविता की बिम्ब धर्मिता की निरर्थकता का एहसास होने लगा। 164) सर्वेश्वर ने तो यहाँ तक लिख दिया कि - बिम्ब प्रतीक को मारी गोली, बोलिए मेरे साथ खड़ी फर्रुखावादी बोली। (165) बिम्ब के विरोध में नामवर सिंह यह तर्क देते हैं कि सामान्यतः जिसे बिम्ब कहा जा सकता है, उसके बिना भी कविताएँ लिखी गयी हैं, और वे बिम्ब धर्मी कविताओं से किसी भी तरह कम अच्छी नहीं कही जा सकती। (166) 'बिम्ब' का विरोध केवल हमारे देश में ही नहीं हुआ। पाश्चात्य जगत में भी इसे विरोध का दंश सहना पड़ा है। विरोध चाहे जितना हो उसकी उपयोगिता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। केदारनाथ अग्रवाल के शब्दों में - 'कविता में बिम्ब विधान भी होना चाहिए अन्यथा वह आदमी के मन पर प्रभाव नहीं डाल सकती और टिकाऊ नहीं बन सकती। उसकी लय और उसका बिम्ब-विधान ही कविता को अधिक सम्प्रेषणीय बनाता है और रचना को रूचिर बनाए रखता है। इसे कहने का यह तात्पर्य नहीं है कि कथ्य कुछ न हो कविता लय और बिम्ब मात्र ही हो। (167) [148]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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