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________________ लिए नीले शंख का बिम्ब चुना है। इस बिम्ब से कवि यह भी बताना चाहता है कि शंखध्वनि मांगल्य का प्रतीक है और 'प्रात नभ था, बहुत नीला शंख जैसे' पंक्ति मंगलमय बेला की सूचना दे देती है। प्रयोगवाद की केवल प्रयोगिनी परम्परा की सीमा को तोड़कर एक स्वतंत्र कवि के रूप में महाकवि निराला की साफ-सुथरी खुली मानवतावादी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए समाज के शोषण का सशक्त विरोध मुक्तिबोध ने अपनी लेखनी से किया है। इनकी कविताओं में भावों के साथ-साथ शब्दों की दौड़ इतनी सार्थक और सटीक है कि ऐसा लगता है, जैसे कोई चितेरा विशाल कैनवास तैयार कर रहा हो, जिसमें समतल और गहराइयों के साथ-साथ ऊँचाइयों का भी समावेश स्वतः ही होता चला जाता है। इनके हर शब्द चित्र के पीछे एक अभिनव काव्यशक्ति के दर्शन होते हैं। इनकी भाषा की शक्ति इनमें हर वर्णन को अर्थपूर्ण और चित्रमय बना देती है। इन्होंने कभी भी विशिष्ट शब्द की खोज नहीं की, अपितु वह अपनी अभिव्यक्ति को सहज और स्वाभाविक रूप देने के लिए विशिष्ट बिम्ब और विशिष्ट प्रतीक-योजना की खोज में रत रहे हैं। जैसे- 'मैं तुम लोगों से दूर हूँ' कविता देखी जा सकती है - मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है - कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है अकेले में साहचर्य का हाथ है उनका जो तुम्हारे द्वारा गर्हित है किंतु वे मेरी व्याकुल आत्मा में, बिम्बिल है, पुरस्कृत, इसलिए तुम्हारा मुझ पर सतत आघात है। - मुक्तिबोध उक्त कविता में समाज की दुर्व्यवस्था का बिम्ब उभरा है। कवि ने पुरी कविता में 'मैं' 'तुम' 'वे' 'तुम्हारे' 'तुम्हारा' जैसे सर्वनामों के द्वारा निर्दिष्ट रूपों की [144]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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