SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ >> बिम्ब और प्रयोगधर्मिता बीसवीं सदी के प्रारंभ में 'स्वच्छन्दतावाद' के विरोध में टी.ई. ह्यूम का यह कथन महत्वपूर्ण है कि "कविता ऐसी हो जो स्पष्ट रूप से नुकीली हो, अर्थात् उसमें चित्र कल्प एक गहरे चित्र की तरह हो। (147) इसमें कवि जीवन की किसी भी झलक अथवा घटना को, किसी भी विचार की गहनतम से गहनतम परत को अथवा किसी भी क्षणिक से क्षणिक संवेदनात्मक आभास को शब्द चित्र से इस रूप में प्रस्तुत करे कि वह मूर्तिमान हो जाय / हिन्दी में काव्य बिम्ब की अवधारणा मूलतः आधुनिक काल की ही देन है। जहाँ तक काव्य में बिम्ब के प्रयोग का प्रश्न है वहाँ तो निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि सधा सधाया कवि चाहे वह प्राचीनकाल का हो अथवा आधुनिक काल का, उसकी कविता में बिम्ब विधान होगा ही। यह बात दीगर है कि प्राचीन कवि बिम्बों के स्वरूप से परिचित नहीं थे, वे बिम्ब को लक्ष्य में रखकर कविता नहीं लिखे, प्रत्युत स्वतः स्वाभाविक रूप से विविध बिम्बों का समावेश उनकी कविता में हुआ। आधुनिक काल में बिम्ब को लक्ष्य में रखकर कविता का सृजन छायावादी युग से प्रारंभ हुआ। सन् 1918 में पाश्चात्य साहित्य में बिम्ब विधा चरमोत्कर्ष पर थी, यह समय हिन्दी काव्य में छायावाद के प्रारंभ का था। भाव, भाषा और शिल्प की दृष्टि से छायावादी युग जहाँ नवीन स्थापनाओं से समृद्ध हो रहा था वहीं बिम्ब परक कविताओं की शुरूआत भी हो रही थी। इस संदर्भ में केदारनाथ सिंह लिखते हैं कि "हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में बिम्ब के रचनात्मक स्वरूप संवेदनाओं का मिश्रण और तीव्र संवेगात्मकता की व्याख्या का पहला प्रयास छायावाद में ही हो चुका था। (148) कदाचित इसीलिए पंतजी ने पल्लव की भूमिका में बिम्ब के लिए चित्रभाषा शब्द का प्रयोग करते हुए लिखा था- "कविता में चित्र भाषा की आवश्यकता पड़ती है, उसके शब्द सस्वर होने चाहिए, जो बोलते हों, सेब की तरह जिसके रस की मधुर लालिमा भीतर न समा सकने के कारण बाहर झलक पड़े, जो अपने भाव को अपनी ध्वनि में आँखों के सामने चित्रित कर सके। (149) आलोचना के क्षेत्र में बिम्ब शब्द के प्रथम प्रयोक्ता और व्याख्याता आचार्य रामचंद्र शक्ल हैं जिन्होंने स्पष्टतः लिखा है कि 'काव्य में अर्थग्रहण मात्र से काम नहीं चलता, बिम्ब ग्रहण अपेक्षित होता है। (150) [141]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy