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________________ तीर वचन का, लोह-तीर से अधिक बींध देता है मर्म साधारण संसद से होता भिन्न समर-भूमि का धर्म 169) उक्त उदाहरण में वाणी की कर्कशता तथा कठोरता में 'तीर' का बिम्बांकन किया गया है दूसरी ओर ‘साधारण संसद' और 'समरभूमि' में समूह की स्थिति होते हुए भी भिन्नता का दर्शन कराया गया है, जो कवि की प्रगल्भ भाव-चेतना का सूचक है। एक अन्य उदाहरण से कल्पना एवं भावना द्वारा बिम्बांकन की इस प्रक्रिया को आसानी से समझा जा सकता है : केंचुल को फोड़ते हुए उठो, जैसे बीज छिलके को फोड़ता हुआ उठता है। संघर्ष के फौलादी झकोरों को, तोड़ते हुए बढ़ो, जैसे अंकुर, कंकड़, पत्थर तोड़ता हुआ बढ़ता है। फूलो फलो जैसे पेड़ फूलता है |(10) उक्त उदाहरण में केंचुल', 'बीज' और 'अंकुर' के बिम्बों से आशा और उत्साह का भाव जगाया गया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कल्पना के दो रूपों को स्वीकार किया है, जिनमें एक विधायक कल्पना है तो दूसरी ग्राहक कल्पना। कवि में विधायक कल्पना होती है। कल्पना और भाव संचार की तीव्रता पर काव्य की रमणीयता निर्भर करती है। इसीलिए आचार्य शुक्ल कविता में अर्थग्रहण को महत्व न देकर "बिम्ब-ग्रहण' को महत्व देते हैं / (11) ___ कवि का संबंध चेतना से होता है, चेतना जितनी जागृत एवं समृद्ध होती है, वस्तु की पहचान उतनी ही तीव्रतर होती है। संसार व प्रकृति को वह अपने दृष्टि 1171
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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