SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का प्रयोजन मानते हैं । पाश्चात्य काव्यशास्त्रियों में प्लेटो, रस्किन, टालस्टॉय, रिचर्ड्स ने काव्य का प्रयोजन लोकमंगलकारी माना है। प्लेटो के अनुसार 'काव्य का लक्ष्य है—आन्तरिक उदात्तभाव और सौन्दर्य को उद्घाटित करना, लोक व्यवस्था और न्याय संगतता का परिपालन करना और जगत के सत्य रूप की ही अभिव्यक्ति करना । *(68) अरस्तु ने 'नीति सापेक्ष आनन्द को काव्य का उद्देश्य माना है तो विक्टर कजिन कला का उद्देश्य नैतिक सौंदर्य की अभिव्यक्ति स्वीकारते हैं । (69) वर्ड्सवर्थ की दृष्टि में काव्य का लक्ष्य है 'सत्य और सौंदर्य के माध्यम से आनन्द प्रदान करना।' शेले भी मानते हैं कि 'काव्य जीवन का प्रतिबिम्ब है जो इसके नित्य सत्य में अभिव्यक्त रहता है | (70) - इस प्रकार संस्कृत, हिन्दी एवम् पाश्चात्य जगत के विचारकों ने अपनी-अपनी दृष्टि से काव्य प्रयोजन की व्याख्या की हैं। संस्कृत के आचार्यों ने काव्य का प्रयोजन - धर्म, यश, लोकोपदेशक, अर्थ, काम, मोक्ष, आनन्द, कान्तासम्मति उपदेश, शिव की क्षति तथा परमानन्द माना है । हिन्दी के कवियों एवम् समीक्षकों ने काव्य का लक्ष्य 'स्वान्तः सुखाय' जगत के मार्मिक पक्षों का उद्घाट्न पर दुखकातरता, संवेदनशीलता, लोकमंगल की धारणा, आत्मानुभूति तथा जीवन में सत्य, शिवम्, सुन्दरम् की प्रतिष्ठा - सुनिश्चित किया है। पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि में काव्य प्रयोजन - लोकमंगल की भावना, सौंदर्य, आनन्द, उदात्त भाव की प्रतिष्ठा तथा जगत के सत्य का उद्घाटन होना चाहिए। किन्तु ऐसा कवि जो मान, प्रतिष्ठा, पद, यश, गरिमा, धन, वैभव आदि लोकेषणा से मुक्त हो उसके काव्य का क्या प्रयोजन हो सकता है? आचार्य महाप्रज्ञ के संबंध में यह प्रश्न विचारणीय एवं गंभीर है। आचार्य महाप्रज्ञ तत्ववेत्ता दार्शनिक एवम् समाज सुधारक संत हैं, वे संसार में रहते हुए भी संसारातीत हैं । वे आत्म साधना में रत अपनी जाज्वल्यमान वाणी से जन-जन के हृदय को प्रकाशित करने वाले पावन प्रदीप हैं। इसलिए उनके काव्य का लक्ष्य लोककल्याण एवं स्वान्तः सुखाय ही है । अपने लेखन के संबंध में आचार्य श्री का कथन है कि 'मेरा लेखन न प्रकाशन से जुड़ा था और न बाजार से । वह स्वान्तः सुखाय से जुड़ा था । (71) 'लेखन मेरा व्यवसाय नहीं 93
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy