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________________ दृष्टि का विषय २० निमित्त-उपादान की स्पष्टता अब आगमभाषा से समझाते हैं कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति कब होती है ? पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध की गाथा गाथा ३७८ अन्वयार्थ 'दैव (कर्म) योग से, कालादिक लब्धियों की प्राप्ति होने पर संसारसागर (का किनारा) निकट आने पर अथवा भव्यभाव का विपाक होने पर जीव, सम्यग्दर्शन को प्राप्त करता है।' यहाँ जब सम्यग्दर्शन होता है तब यथार्थ निमित्त का ज्ञान कराया है, अर्थात् कार्यरूप से तो उपादान स्वयं ही परिणमता है परन्तु तब यथार्थ निमित्त की उपस्थिति नियम से होती ही है। इसलिए कहा जा सकता है कि कार्य निमित्त से तो होता ही नहीं, परन्तु निमित्त के बिना भी होता ही नहीं' और इसीलिए जिनागम में जीव को पतन के कारणभूत निमित्तों से दूर रहने का उपदेश स्थान-स्थान पर दिया गया है और वह योग्य ही है। अन्यथा कोई एकान्त से ऐसा माने कि निमित्त तो परम अकर्ता ही है, और स्वच्छन्द से चाहे जैसे निमित्तों का सेवन करे, तो उसे नियम से मिथ्यात्वी और अनन्त संसारी ही समझना क्योंकि उसे निमित्त का यथार्थ ज्ञान ही नहीं है। इसीलिए कहा है कि निश्चय से कार्य निमित्त से तो होता ही नहीं क्योंकि उपादान स्वयं ही कार्यरूप से परिणमता है, नहीं कि निमित्त परन्तु कार्य निमित्त के बिना भी होता ही नहीं क्योंकि जब कोई भी कार्य होता है तब उसके योग्य निमित्त की उपस्थिति अवश्य होती ही है-अविनाभावरूप से होती ही है और इसीलिए मुमुक्षु जीव विवेक से हमेशा निर्बल निमित्तों से बचने का ही प्रयास करता है, जो कि उसके पतन का कारण बन सकते हैं और यही निमित्त-उपादान की यथार्थ समझ है; निमित्त-उपादान की विशेष छनावट आगे समयसार के निमित्त-उपादान के अधिकार में भी करेंगे।
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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