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________________ सम्यग्दर्शन का स्वरूप 49 ९ सम्यग्दर्शन का स्वरूप सम्यग्दर्शन, वह मोक्षमार्ग के द्वार समान है और पूर्ण भेदज्ञानस्वरूप स्वात्मानुभूतिरूप सम्यग्दर्शन हुए बिना मोक्षमार्ग में प्रवेश शक्य ही नहीं; ऐसे भेदज्ञानयुक्त-स्वात्मानुभूतियुक्त सम्यग्दर्शन को ही निश्चय सम्यग्दर्शन कहा जाता है और वही मोक्षमार्ग के प्रवेश के लिये वास्तविक परवाना है और यह परवाना मिलने के बाद वह जीव नियम से अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल में सिद्ध हो ही जाता है, इस कारण से इस जीवन में सर्व प्रथम में प्रथम यदि कुछ करने योग्य हो तो वह सम्यग्दर्शन | प्रथम हम सम्यग्दर्शन का स्वरूप समझेंगे। सम्यग्दर्शन अर्थात् देव-गुरु-धर्म का स्वरूप जैसा है वैसा समझना, अन्यथा नहीं और जब तक कोई भी आत्मा अपना यथार्थ स्वरूप नहीं समझता अर्थात् स्व की अनुभूति नहीं करता, तब तक देव गुरु-धर्म का यथार्थ स्वरूप भी नहीं जानता परन्तु वह मात्र देव-गुरु-धर्म के बाह्य स्वरूप की ही श्रद्धा करता है और वह उसे ही सम्यग्दर्शन समझता है परन्तु वैसी देव-गुरु-धर्म की बाह्य स्वरूप की ही श्रद्धा यथार्थ श्रद्धा नहीं है और इसलिए वह निश्चय सम्यग्दर्शन का लक्षण नहीं, क्योंकि जो एक को (आत्मा को ) जानता है वह सर्व को (जीव-अजीव इत्यादि नवतत्त्व और देव-गुरु-धर्म के यथार्थ स्वरूप को ) जानता है, अन्यथा नहीं। क्योंकि अन्यथा है वह व्यवहार (उपचार) कथन है और इसलिए वह सम्यग्दर्शन भव के अन्त के लिये कार्यकारी नहीं है। अर्थात् एक आत्मा को जानने से ही वह जीव सच्चे देवतत्त्व का आंशिक अनुभव करता है और इसीलिए वह सच्चे देव को अन्तर से पहिचानता है और वैसे सच्चे देव को जानते ही अर्थात् (स्वात्मानुभूति सहित की) श्रद्धा होते ही वह जीव वैसे देव बनने के मार्ग में गमनशील सच्चे गुरु को भी अन्तर से पहिचानता है और साथ ही साथ वह जीव वैसा देव बनने के मार्ग बतलानेवाले सच्चे शास्त्र को भी पहिचानता है। इसलिए प्रथम तो शरीर को आत्मा न समझना और आत्मा को शरीर न समझना अर्थात् शरीर में आत्मबुद्धि होना, वह मिथ्यात्व है; शरीर, वह पुद्गल (जड़) द्रव्य का बना हुआ है और आत्मा, वह अलग ही (चेतन) द्रव्य होने से पुद्गल को आत्मा समझना अथवा आत्मा को पुद्गल समझना, वह विपरीत समझ है। दूसरे प्रकार से पुद्गल से भेदज्ञान और स्व के अनुभवरूप ही वास्तविक सम्यग्दर्शन होता है और वह कर्म से देखने में आवे तो कर्मों की पाँच/सात प्रकृति
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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