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________________ पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध की वस्तुव्यवस्था दर्शाती गाथाएँ लिया जाता है? तो उसका उत्तर यह है कि - जैसी आपकी दृष्टि होगी, वैसा ही द्रव्य आपको दिखेगा अर्थात् जो द्रव्य को प्रमाणदृष्टि से देखते हैं, उन्हें वह द्रव्य = वस्तु प्रमाणरूप दिखेगा, जो पर्यायदृष्टि से देखे उसे वह द्रव्य मात्र पर्यायरूप ज्ञात होगा और उसी प्रमाण के द्रव्य को यदि द्रव्यार्थिकनय के चक्षु से निरखा जाये तो वह पूर्ण वस्तु (पूर्ण द्रव्य) मात्र त्रिकाली ध्रुवरूप ही ज्ञात होगा कि जो पर्याय से निरपेक्षरूप सामान्य मात्र ही है; यही जैन सिद्धान्त की अद्भुता है, कमाल है और यही विधि है पर्यायरहित द्रव्य पाने की । इसलिए सर्व जनों को हमारा निवेदन है कि सर्व प्रथम आप‘जैसा है वैसा' वस्तु व्यवस्था समझोगे तो आपके प्रश्न का उत्तर, आपको अपने आप ही मिल जायेगा और इसी कारण से ही यह बात इतने विस्तार से समझायी है और उसमें पुनरावर्तन का दोष सेवन करके भी बारम्बार उसी बात को स्पष्ट किया है कि वस्तु व्यवस्था और स्याद्वाद शैली समझे बिना शब्द और वाक्यों के अर्थ समझना अत्यन्त कठिन है और अनेकान्तस्वरूप वस्तु व्यवस्था समझने के बाद वह अत्यन्त सरल है, यही बात आगे दृढ़ कराते हैं। 43 - गाथा २५४ – अन्वयार्थ - ' ( उत्पाद - व्यय) तथा ध्रौव्य भी नियम से उत्पाद-व्यय इन दोनों के बिना नहीं होता क्योंकि वहाँ विशेष के अभाव में सतात्मक सामान्य का भी अभाव होता है' अर्थात् उत्पाद-व्ययरूप विशेष ध्रौव्यरूप सामान्य का ही बना है कि जिससे एक के अभाव में दूसरे का भी अभाव होता है। भावार्थ - ‘वस्तु सामान्य विशेषात्मक है, विशेष निरपेक्ष सामान्य तथा सामान्य निरपेक्ष विशेष वह कोई वस्तु ही सिद्ध नहीं होती, ध्रौव्य सामान्यरूप है और उत्पाद-व्यय विशेषरूप है। इसलिए उत्पाद - व्यय बिना ध्रौव्य भी नहीं बन सकता, क्योंकि उत्पाद - व्ययात्मक विशेष बिना ध्रौव्यात्मक सामान्य की भी सिद्धि नहीं हो सकती - इसलिए - गाथा २५५ - अन्वयार्थ - ' इस प्रकार यहाँ उत्पादादिक तीनों की व्यवस्था बहुत सुन्दर है परन्तु उन उत्पादादिक तीनों में से किसी एक के निषेध को कहनेवाला अपने पक्ष का भी घातक होता है। इसलिए केवल उत्पादादिक केवल एक की व्यवस्था मानना ठीक नहीं है।' यहाँ स्पष्ट होता है कि यदि कोई अभेद द्रव्य में से पर्याय को निकालने का प्रयत्न करेगा अर्थात् जिसे पर्यायरहित द्रव्य इष्ट होगा तो उसे पूर्ण द्रव्य का ही लोप हो जायेगा, अर्थात् वह मात्र भ्रम में ही रह जायेगा, इसलिए पर्यायरहित द्रव्य निकालने की विधि जो ऊपर बतलायी है, वैसे द्रव्यार्थिकनय के चक्षु से अर्थात् द्रव्यदृष्टि से है, मात्र द्रव्य को ही ध्यान में लेने से वह पूर्ण द्रव्य कि जिसे आप प्रमाण का द्रव्य भी कह सकते हो, वैसा पूर्ण द्रव्य ही मात्र द्रव्यरूप अर्थात् ध्रुवरूप ही ज्ञात होगा, उसका ही लक्ष्य होगा, इसलिए पर्यायरहित द्रव्य चाहिए तो उसकी विधि
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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