SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 184 दृष्टि का विषय से भव अच्छे मिल भी जायें, तथापि भवकटी नहीं होती और इस कारण अनन्त दुःखों का अन्त नहीं आता, अर्थात् नरक-निगोद के नदावा (acquaintace=अब पश्चात् वह जीव कभी नरक/निगोद में जानेवाला नहीं) होता नहीं-इसलिए ऐसे दुर्लभ सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये और तैयारीरूप इस संसार के प्रति वैराग्य, संसार के सुखों के प्रति उदासीनता और शास्त्र स्वाध्याय से यथार्थ तत्त्व का निर्णय आवश्यक है। यह मनुष्यभव अत्यन्त दुर्लभ है, इसलिए इसका उपयोग किसमें करना-यह विचारना अत्यन्त आवश्यक है; क्योंकि जैसा जीवन जीया हो, प्राय: वैसा ही मरण होता है; इसलिए नित्य जागृति जरूरी है। जीवन में नीति-न्याय आवश्यक है, नित्य स्वाध्याय, मनन, चिन्तवन आवश्यक है, क्योंकि आयुष्य का बन्ध चाहे जब पड़ सकता है और गति अनुसार ही मरण के समय लेश्या होती है। इसलिए जो समाधिमरण चाहते हों, उन्हें पूर्ण जीवन सम्यग्दर्शनसहित धर्ममय जीना आवश्यक है। इससे जीवनभर सर्व प्रयत्न सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये ही करनायोग्य है. क्योंकि सम्यग्दर्शन के लिये गये सर्व शभभाव यथार्थ हैं. अन्यथा वे भवकटी के लिये अयथार्थ सिद्ध होते हैं और उस सम्यग्दर्शन की प्राप्ति प्राप्ति के बाद भी प्रमाद सेवन करनायोग्य नहीं है क्योंकि एक समय का भी प्रमाद नहीं करने की भगवान की आज्ञा है। सबको मात्र अपने ही परिणाम पर दृष्टि रखनेयोग्य है और उसमें ही सुधार चाहिए। दूसरा क्या करता है?' अथवा दूसरे क्या कहेंगे?' इत्यादि न विचारकर अपने लिये क्या योग्य है-यह विचारना। आर्तध्यान और रौद्रध्यान के कारण नहीं सेवन करना और यदि भूल से, अनादि के संस्कारवश आर्तध्यान और रौद्रध्यान हुआ हो तो तुरन्त ही उसमें से परान्मुख होना, (प्रतिक्रमण); उसका पश्चाताप करना (आलोचना) और भविष्य में ऐसा कभी न हो (प्रत्याख्यान)-ऐसा दृढ़ निर्धार करना। इस प्रकार दुर्ध्यान से बचकर, पूर्ण यत्न संसार के अन्त के कारणों में ही लगाना योग्य है। ऐसी जागृति जीवन के लिये आवश्यक है, तब ही मरण के समय जागृतिसहित समाधि और समत्वभाव रहने की सम्भावना रहती है कि जिससे समाधिमरण हो सके। सर्व जनों को ऐसा समाधिमरण प्राप्त हो-ऐसी भावना के साथ.... जिन-आज्ञा से विरुद्ध हमसे कुछ भी लिखा गया हो तो त्रिविध-त्रिविध हमारे मिच्छामि दुक्कड्म ॐ शान्ति... शान्ति... शान्ति...
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy