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________________ नियमसार-अनुसार सम्यग्दर्शन का विषय 93 नियमसार-अनुसार सम्यग्दर्शन का विषय अब हम श्री नियमसार शास्त्र से जानेंगे कि सम्यग्दर्शन का विषय क्या है और सम्यग्दृष्टि किसका वेदन करता है? वह किन भावों में रक्त होता है ? इत्यादि श्लोक २२-‘सहज ज्ञानरूपी साम्राज्य जिसका सर्वस्व है ऐसा शुद्ध चैतन्यमय अपने आत्मा को जानकर (अर्थात् शुद्धद्रव्यार्थिकनय से अपने को शुद्धात्मा जानकर) मैं यह निर्विकल्प होऊँ' अर्थात् शुद्ध चैतन्यमय आत्मा, वही सम्यग्दर्शन का विषय है क्योंकि उसे भाते ही जीव निर्विकल्प होता है। श्लोक २३-‘दृशि ज्ञप्ति वृत्तिस्वरूप (दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप परिणमित) ऐसा जो एक ही चैतन्य सामान्यरूप (अर्थात् शुद्ध द्रव्यार्थिकनय के विषयरूप मात्र सामान्य जीव-शुद्धात्मापरमपारिणामिकभाव) निज आत्मतत्त्व, वह मोक्षेच्छुकों को (मोक्ष का) प्रसिद्ध मार्ग है; इस मार्ग के बिना मोक्ष नहीं है।' ____ अर्थात् यह सामान्य जीवमात्र की जिसे सहज परिणामी अथवा तो परमपारिणामिकभावरूप भी कहा जाता है, वह ही दृष्टि का विषय है, अर्थात् सम्यग्दर्शन का विषय है और उससे ही सम्यग्दर्शन होने पर उसे ही प्रसिद्ध मोक्ष का मार्ग कहा क्योंकि सम्यग्दर्शन से ही उस मार्ग में प्रवेश है। ___ श्लोक २४-‘परभाव होने पर भी (अर्थात् विभावरूप औदयिकभाव होने पर भी, उन औदायिकभाव को शुद्ध द्रव्यार्थिकनय से परभाव बतलाया है क्योंकि वे कर्मों अर्थात् पर की अपेक्षा से निमित्त से होते हैं), सहज गुणमणि की खानरूप और पूर्ण ज्ञानवाले शुद्धात्मा को (परमपारिणामिकभावरूप शुद्धात्मा को) एक को जो (भेदज्ञान को करके) तीक्ष्ण बुद्धिवाला शुद्धदृष्टि (अर्थात् शुद्ध द्रव्यार्थिक चक्षु से) पुरुष भजता है (अर्थात् उस शुद्धभाव में मैंपना' करता है), वह पुरुष परमश्री रूपी कामिनी का (मुक्ति सुन्दरी का) बल्लभ बनता है' अर्थात् जीव शुद्धात्मा में एकत्व करके सम्यग्दर्शन प्राप्त होने से मोक्षमार्ग में प्रवेश पाकर अवश्य मुक्ति को प्राप्त करता है। श्लोक २५-‘इस प्रकार पर गुण पर्यायें होने पर भी (अर्थात् आत्मा औदयिकभावरूप से परिणमता होने पर भी, अर्थात् आत्मा अशुद्धरूप से परिणमा होने पर भी) उत्तम पुरुषों के हृदयकमल में (अर्थात् मन में) कारण आत्मा विराजमान है (अर्थात् परमपारिणामिकभावरूप कारण परमात्मा
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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