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________________ प्रवचनसार-अनुसार सम्यग्दर्शन का विषय २८ प्रवचनसार-अनुसार सम्यग्दर्शन का विषय गाथा ३३ टीका-'जैसे भगवान, युगपत् परिणमते समस्त चैतन्य विशेषोंवाले केवलज्ञान द्वारा, अनादिनिधन-निष्कारण-असाधारण-स्वसंवेद्यमान-चैतन्य सामान्य जिसकी महिमा है तथा चेतक स्वभाव द्वारा एकपना होने से जो केवल (अकेला, अमिश्रित, शुद्ध, अखण्ड) है...' ऐसा है सम्यग्दर्शन का विषय और वह चैतन्य सामान्य होने से अर्थात् उसमें सर्व विशेषभावों का अभाव होने से ही शुद्धात्मा को दृष्टि के विषय को अलिंगग्राह्य कहा है अर्थात् इसी अपेक्षा से अलिंगग्रहण के बोल समझना आवश्यक है, अन्यथा नहीं अर्थात् एकान्त से नहीं क्योंकि एकान्त तो अनन्त परावर्तन का कारण होने में सक्षम है। गाथा ८० भावार्थ-“अरिहन्त भगवान और अपना आत्मा निश्चय से समान है; और अरिहन्त भगवान मोह-राग-द्वेषरहित होने के कारण उनका स्वरूप अत्यन्त स्पष्ट है, इसलिए यदि जीव द्रव्य-गुण-पर्यायरूप से उन (अरिहन्त भगवान के) स्वरूप को मन द्वारा प्रथम समझ ले तो यह जो ‘आत्मा' 'आत्मा' ऐसा एकरूप (कथंचित् सदृश) त्रिकालिक प्रवाह वह द्रव्य है, उसका जो एकरूप रहनेवाला चैतन्यरूप विशेषण वह गुण है, और उस प्रवाह में जो क्षणवर्ती व्यतिरेक, वह पर्याय है।' ऐसा अपना आत्मा भी द्रव्य-गुण-पर्यायरूप से उसे मन द्वारा ख्याल में आता है। इस प्रकार त्रिकालिक निज आत्मा को मन द्वारा ख्याल में लेकर पश्चात्-जैसे मोतियों को और सफेदी को हार में ही अन्तर्गत करके केवल हार को जानने में आता है, वैसे-आत्मपर्यायों को और चैतन्यगुण को आत्मा में ही अन्तरगर्भित करके (सम्यग्दर्शन का विषय) केवल आत्मा को जानने पर परिणामी-परिणाम-परिणति के भेद का विकल्प नष्ट होता जाने से जीव निष्क्रिय चिन्मात्रभाव को (शुद्धोपयोग) प्राप्त करता है और इससे मोह (दर्शनमोह) निराश्रय होता हुआ विनाश को प्राप्त होता है। यदि ऐसा है, तो मोह की सेना पर विजय प्राप्त करने का उपाय मैंने प्राप्त किया है"ऐसा कहा, अर्थात् सम्यग्दर्शन प्राप्त किया। श्लोक ७ - 'जिसने अन्य द्रव्य से भिन्नता द्वारा (प्रथम भेदज्ञान) आत्मा को एक ओर हटा लिया है (अर्थात् परद्रव्य से अलग दिखाया है) तथा जिसने समस्त विशेषों के समूह को सामान्य में मग्न किया है (द्वितीय भेदज्ञान) (अर्थात् समस्त पर्यायों को द्रव्य के भीतर डूबा हुआ
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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