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________________ भी रोष (क्रोध) आए तो फिर से आपको पाप का बंधन होता है, जो कि भविष्य के दुःखों का जनक (कारण) बनता है। इसी प्रकार अनादि से हम दुःख भोगते हुए, नये दुःखों का सर्जन करते रहे हैं और अभी भी कर रहे हैं। इसलिए ऐसे अनंत दुःखों से छूटने का मात्र एक ही मार्ग है कि दुःख के निमित्त को मैं उपकारी मानूँ, क्योंकि वह मुझे पाप से छुड़ाने में निमित्त हुआ है। उस निमित्त का किंचित् भी दोष गुनाह चिंतवन न करूँ, परंतु अपने पूर्व पापों का ही अर्थात् अपने ही पूर्व के दुष्कृत्य ही वर्तमान दुःख के कारण है; इसलिए दुःख के समय ऐसा चिंतवन करना कि ओहो ! मैंने ऐसा दुष्कृत्य किया था ! धिक्कार है मुझे ! धिक्कार है !! मिच्छामि दुक्कडं ! मिच्छामि दुक्कडं ! (यह है प्रतिक्रमण) और अब निर्णय करता हूँ कि ऐसे कोई दुष्कृत्य का आचरण फिर से कभी करूँगा ही नहीं! नहीं ही करूँगा ! ( यह है प्रत्याख्यान) अर्थात् अपने दुःख के कारणरूप से अन्यों को दोषित देखना छोड़कर अपने ही पूर्वकृत भावों अर्थात् पूर्व के अपने ही पाप कर्मों का ही दोष देखकर, अन्यों को उन पापों से छुड़ानेवाले समझकर, धन्यवाद दो (THANK YOU! -WELCOME!) और नये पापों से बचो। यदि आप सुख के अर्थी हो तो आप प्रत्येक को सुख दो! अर्थात् आप जो दोगे, वही आपको मिलेगा; ऐसा है कर्म ४ सुखी होने की चाबी
SR No.009385
Book TitleSukhi Hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherJayesh Mohanlal Sheth
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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